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प्राचीन जैन इतिहास। ५५ ___ (५) कीर्तिधवलके समयमें एक श्रीकण्ठ नामक विद्याधर राजा था। इसकी बहिन देवीका रत्नपुरके राना पुष्पोत्तरने अपने पुत्र पद्मोत्तरके साथ विवाह करनेके लिये श्रीकण्ठसे कई बार निवेदन किया परन्तु श्रीकण्ठने अपनी बहिन पद्मोत्तरको न दे लङ्काके राजा कीर्तिधवलको दी । एक दिन श्रीकण्ठ मुमेरु पर्वतके चैत्यालयोंकी वन्दना करके वापिस लौट रहा था तब उसे मार्गमें पुष्पोत्तरकी पुत्री पद्माभाका गाना सुनाई दिया । पद्मामा उस समय अपने गुरुके समीप वीणा बजा रही थी। पद्माभाके मधुर कण्ठ पर मोहित होकर श्रीकण्ठ, पद्माभाके सङ्गीत-गृहमें आया । इधर श्रीकण्ठके रूपको देखकर पद्माभा उसपर आसक्त हो गई। पद्माभाको आसक्त जान श्रीकण्ठ, अपने विमान पर चढ़ा कर आकाश-मार्गसे पद्माभाको ले चला ! जब पुष्पोत्तरने सुना तब वह श्रीकण्ठ पर और भी अधिक क्रुद्ध हुआ और उस पर चढ़ाई कर दी । श्रीकण्ठ भागकर अपने बहिनोई कीर्तिधवलकी शरणमें गया वहां भी पुष्पोत्तरकी सेना पहुची। कीर्तिधवलने युद्धकी तैयारी की और दूतों द्वारा पुष्पोत्तरको समझाया । इधर पद्माभाने भी कहला भेना कि मेरा पति श्रीकण्ठ ही है। दूसरेके साथ विवाह न करनेकी मुझे प्रतिज्ञा है तब पुष्पोत्तरने युद्ध बंद कर कन्याके साथ श्रीकण्ठका विवाह मार्गशीर्ष शुक्ला १ को कर दिया। कीर्तिधवलने अपने साले श्रीकण्ठको उसके पूर्व निवास स्थानपर नहीं जाने दिया और उसे बानर द्वीप दिया ।
(६) यह द्वीप समुद्रके मध्यमें तीनसौ योजनका था। इसमें बन्दर बहुत ही चतुर और मनोहर होते थे। पुराणकारोंने