Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 153
________________ १४४ दूसरा भाग । नदी पार गये । समुद्र तटके अनेक राजाओंको जीता । भीरु देश, पवनकच्छ, चारब, त्रजट, नट, सक्र, केरल, नेपाल, मालव, अरल, सर्वरत्र, शिरपार, शैल गोशील, कुशीनार, सूरपार, कमनर्त, विधि, शूरसेन, बल्हीक, उलूक, कौशल, गान्धार, सौबीर, अन्ध्र, काल, कलिङ्ग इत्यादि अनेक देशों पर विजय पताका फहराते हुए दोनों कुमार पुंढरीक नगरीमें वापिस आये । अपने 1 विजयी युगल कुमारोंको देखकर माता सीता परम प्रसन्न हुई । और नगर में बहुत उत्साह से कुमारोंका स्वागत हुआ । (६) एक दिन नारद कृतान्तवक्र सेनापति से सीताको जिस स्थान पर छोड़ा था, उस स्थानका पता पूँछ कर सीताको ढूँढ रहे थे और ये दोनों कुमार भी उसी वनमें वन-क्रीड़ाथ आये थे । जब इन्होंने नारदको देखा तो भक्तिवश प्रणाम किया । नादने आशीर्वाद दिया कि तुम राम, लक्ष्मणके समान बनो । तब युगल कुमारोंने पूँछा कि राम, लक्ष्मण कौन हैं ? नारदने राम, लक्ष्मण और सीताका सब वृत्तान्त कहा । फिर कुमारोंने पूँछा कि अयोध्या कितनी दूर है ? नारदने कहा कि १६० योजन । यह सुन अनङ्गलवण बोले कि मैं राम, लक्ष्मणसे युद्ध करूँगा । ऐसा कह वज्रगंधसे कहा कि सेना तैयार कराओ । कुमारोंके विद्या - गुरु सिद्धार्थ नारदसे कहने लगे कि कुटुंबियों में परस्पर युद्ध ठनवा कर आपने अच्छा नहीं किया । सीता भी रोने लगीं। और कहा कि तुम्हारा धर्म नहीं है कि युद्ध करो । कुमारोंने उत्तर दिया कि पिताजीने आपको बिना न्याय बनवास दिया है। उन्हें

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