Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 167
________________ १६८ दूसरा भाग। और मंत्री सेनापतिको विदाकर पुरोहितको बुलाया । और इसी सम्बन्धमें पूछा । पुरोहितने निमित्त शास्त्र तथा पुराणों के अनुसार कहा कि यज्ञमें हमारे दोनों कुमारोंका महोदय प्रगट होगा, यह निःसंदेह है । क्योंकि ये हमारे कुमार आठवें बलभद्र नारायण हैं और ये रावण नामक प्रति नारायणको मारेगें । पुरोहितने रावणके पूर्वभव कहकर कहा कि मेघकूट नगरका राजा सहस्रग्रीव था उसे उसके भाईके वलवान पुत्रने निकाल दिया। सहस्रग्रीव वहांसे निकलकर लंकामें आया और वहां तीसहनार वर्षतक राज्य पिया उसका पुत्र शतग्रीव, इसने २५ हजार वर्ष तक राज्य किया। इसका पुत्र पचासग्रीव था इसने २० हजार वर्ष राज्य किया। ५० ग्रीवका पुत्र पुलसप हुआ । इसने १६ हनार वर्ष राज्य किया। इसकी रानीका नाम मेघश्री था । इनके दशानन नामक पुत्र हुआ । इसकी आयु १४००० वर्षको है । एक दिन यह दशानन अपनी रानीके साथ वनमें कोड़ा करने गया था। वहां विनयाई पर्वतके अचेलक नगरके स्वामी राना अमितवेगकी पुत्री मणिमति विद्या सिद्ध कर रही थी। उस पर यह दशानन आशक्त हो गया और उसकी विद्या हरण कर लो। वह विद्या सिद्धके अर्थ बारह वर्षसे उपवासकर रही थी अतः कश हो गई थी। उसने निदान किया कि मैं इस दशाननको ही आगामी भवमें पुत्री होकर इसे मारूंगी। मरकर वह मंदोदरीके यहां पुत्री हुई । जन्मके समय भूकम्प आदि हुए। निमित्त ज्ञानियोंने कहा कि यही रावणके नाशका कारण होगी। यह सुन रावणको भय हुआ और मारीचको आज्ञा दी कि वह पुत्रीको कहीं छोड़ आवे।

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