Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 163
________________ १५४ दूसरा भागा गये और रामने बिभीषण, सुग्रीव, शत्रुघ्न आदि कुछ अधिक . सोलह हज़ार राजाओंके सहित दीक्षा ली । और सत्ताईस हजार स्त्रियोंने आर्यिकाकी दीक्षा ली । दीक्षा लेकर आपने पहिले पांच उपवास किये । छठवें दिन जब आप नन्दस्थली नगरमें पारनेके लिये गये तब वहां बड़ा आनंद हुआ। कोलाहल होने लगा। हाथी, घोड़े छूट गये । यह देख राजाने प्रनाको आज्ञा दी कि तुम विधि नहीं जानते हो। इसलिये राममुनिको आहार मत देना मैं दूंगा । और अपने सामन्तोंको रामचंद्र के पास भेजकर भोजनार्थ उन्हें बुलाया । इस अंतरायके कारण राम फिर वनमें लौट गये । और फिर पांच दिनका उपवास धारण किया तथा प्रतिज्ञा की कि यदि बनमें ही पारना मिलेगा तो आहार करूंगा अन्यथा नहीं । जिस दिन रामके ये पिछले पांच उपवास पूर्ण होने वाले थे उसी दिन एक प्रतिनन्द नामक राजाको एक घोड़ा ले भागा। और वह उसी वनके सरोवर में राजाको साथ लिये हुए फँस गया। तब उक्त राजाकी रानी भी सामंतोंको साथ लेकर, घोड़ेपर बैठ राजाके पीछे भागी, और राजाके पास पहुंच सरोवरमेंसे उसे निकाला । फिर भोजन बनाया । उपवास पूरे हो जानेके कारण राम भी आहारार्थ उधर निकल आये । राजा, रानीने आहार दिया, जिसके कारण पंचाश्चर्य हुए। विहार करते करते राम कोटिशिला पर पहुंचे, वहां आपने घोर तप किया । रामकी यह स्थिति देखकर सीताके जीवने स्वर्गमें विचार किया कि यदि रामका देहांत होकर यहां स्वर्ग में जन्म हो तो हम दोनों मित्र होकर रहें । इस विचारसे रामके ध्यानको उच्च स्थि.

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