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६२ . दूसरा भाग, विद्याएँ सिद्ध हुई । उक्त अनावत देवने रावणके धैर्यको देख कर स्तुति और आपत्तिके समयमें स्मरण करने पर उपस्थित होनेका वचन दिया । रावणकी विद्यासिद्धिसे राक्षसवंश और वानरवंशमें महा हर्ष हुआ । रावणको जो विद्याएँ, सिद्धि हुई उनमें से कईए. कोंके नाम इस प्रकार हैं
नभः संचारिणी, कामदायिनी, कामगामिनी, दुर्निवारा, जगत्कंपा, प्रगुप्ति, भानु मालिनी, अणिमा, लघिमा, क्षोमा, मनस्तं. भकारिणी, संवाहिनी, सुरध्वंसी, कौमारी, वध्पकारिणी, सुविधाना, तमोरूपा दहना. विपलोदरी, शुभपदा, रजोरूपा, दिन रात्रि विधायिनी, वजोदरो, समाकृष्टि, अदर्शिनी, अजरा, अमरा, अनव स्तंभी, तोयस्तंभिनी, गिरिदारिणी, अवलोकिनी, ध्वंसी, धीराघोरा, भुजंगिनी, वीरिनी, एक भुवना, अवध्यादारुणा, मदनासिनी, भास्करी, भयसंभुति ऐशानि, विनिया, जमाबंधिनी, मोचनी, बाराही, कटिलाकृति, चितोद्भवकरी, शांति, कौवेरी, वशकारिणी, योगेश्वरी, बलोत्साही, चंडा, भीति प्रविषिणी इत्यादि।
(८) कुम्भकर्णकी उन पांच विद्याओंके नाम जो उसे सिद्धि हुई इस प्रकार हैं:-सर्व हारिणी, अति संवर्धिनी, जंभिनी, व्योमगामिनी, और निद्रानी।
(e) विभीषणको जो चार विद्याएं सिद्ध हुई उनके नाम इस प्रकार हैं:-सिद्दार्था, शत्रुदमनी, व्याघाता, आंकाशगामिनी ।
(१०) इन तीनों भाइयोंको विद्या सिद्ध होनेपर मुमाली, माल्यवान् , रत्नश्रवा, केकसी, सूर्यरज, रक्षरज आदि रावणके पास आये । और उन्होंने रावणकी बहुत २ प्रशंसा की। रावणने