Book Title: Prachin Jain Itihas Part 02
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 173
________________ दूसरा भाग। लोग बड़े प्रसन्न हुए। और इनका नाम हनुमान भी रखा । यह मेरे प्राणोंसे भी प्यारा मित्र है । इसके साथ हम सम्मेदशिखरकी वंदना करने गये थे वहां सिद्धकूट पर नारद आये उनसे मैंने पूछा कि मेरा पद युवरान पीछा मिलेगा या नहीं। उन्होंने कहा कि राम लक्ष्मण शीघ्र ही बलभद्र नारायण होने वाले हैं सो तुम यदि उनके काम आओ तो हो सकता है और वह काम यह है कि रावण सीताको हर लेगया है तुम यदि पता लगादो तो ठीक है । यह सुन हम आपके पास आये हैं । फिर हनुमानने कहा कि भाप सीताके चिन्ह बतलावें मैं ढूंढ कर लाऊंगा । रामने चिन्ह बताए और अपनी अंगूठी दी। हनुमान उसे लेकर लंकाको चले । लंका बड़ी सुसजित नगरी थी उसके मणियोंके बने हुए कोट और ३२ दर्वाजे थे । हनुमान भ्रमरका रूप धारण कर पहिले रावणकी सभ में गये जब वहां सीता नहीं देखी तब अन्तःपुरके पीछेके दर्वाजेसे कोट पर चढ़कर देखा तो नंदनवन पास दिखलाई दिया अतः वे वहां गये। वहीं शीशमके वृक्षके नीचे सीता बैठी हुई थी। कई दूतियां उसे समझा रहीं थीं । हनुमान वृक्षपर जा बैठे । फिर रावण आया । उसने भी समझाया पर सीता नहीं मानी । मंदो. दरीने आकर रावण को समझाया कि यह कार्य उचित नहीं पर रावणने नहीं माना । रावण चला गया । मन्दोदरीको सीताको चेष्टासे मालूम हुआ कि शायद यह मेरी ही पुत्री है । उसके हृदयमें प्रेम उमड़ा । और स्तनोंसे दूध झरने लगा । मंदोदरीने सीताको यही उपदेश दिया कि तू अपना शील भंग मत कर । और शरीर रक्षार्थ भोजन अवश्य कर । मंदोदरीके जानेपर

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