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प्राचीन जैन इतिहास। ६५ समाचार कहे तब रावण व वैश्रवणका युद्ध गुञ्ज नामक पर्वत पर हुआ । उस युद्ध में रावणकी जय हुई। रावणने युद्ध में भिंडिपाल नामक अस्त्र विशेषके आघातसे वैश्रवणको मूर्छित कर दिया था। जब वैश्रवण आरोग्य हुआ तब वह इतना अशक्त हो गया था कि वह स्वयं कहने लगा कि जिस तरह पुष्प रहित वृक्ष किसी कामका नहीं उसी प्रकार बलरहित सामंतका होना निरर्थक है । पर विचार कर उसने दीक्षा धारण की । वैश्रवणके पास जो पुष्पक विमान था उसे रावणने प्राप्त किया। इस प्रकार अपनी प्राचीन राजधानी लंकाको हस्तगत कर फिर विद्याधरोंकी दक्षिण श्रेणी विनय की।
(१७) दक्षिण श्रेणी विनय कर जब रावण लौट रहा था तब रास्तेमें हरिषेण चक्र के वनवाये हुए मंदिरोंकी वंदना की
और वहां ठहरा । दूपरे दिन एक मदोन्मत्त गनराजको वशमें किया जिसका नाम त्रैलोक्य-मण्डल रक्खा । यहीं पर एक दृतने वानर वंशियों और इन्द्रके यम नामक लोकपालके परस्पर युद्ध होनेके समाचार कहे तथा वानर वंशियों की सहायतार्थ प्रार्थना की। यह समाचार सुनते ही रावण विना किसीको लिये वानरवशी गजा सुर्यरन और रक्षाजकी सहायतार्थ चल दिया यह देख सेनापति और सेना भी रावणके पीछे चल दी । यम बड़ा बलवान् था। उसने अपने राज्यमें एक नकली नरक बनवा रक्खा था। जिप्समें वह शत्रुओं और अपराधियोंको कैद करवा कर दुःख दिया करता था । रावणने पहिले पहिल इनी नरकको ध्वंश किया।