________________
दूसरा भाग।
भाग
उनसे मिलो । दशरथ भी चंद्रगतिके दीक्षाग्रहण उत्सवमें शामिल हुए । रामचंद्र, लक्ष्मण, सीता आदि भी आये । महाराना जनक भी आये । वहीं भटमंडलका सबसे परिचय हुआ । भटमंडलने पिता जनकसे अपने नगरको चलनेके लिये कहा । जनकके भाई कनकको राज्य दिया और भटमंडलके साथ गये । भटमंडल एक मास तक अयोध्या रहे थे !
पाठ २८. महाराज दशरथका वैराग्य, राम लक्ष्मणको वनवास।
(१) कुछ दिनों बाद राजा दशरथ फिर आचार्य सर्वभूतिके पास वन्दनार्थ गये । वहां अपने पूर्वभव तथा धर्मोपदेश सुन चित्तमें वैराग्य उत्पन्न हुआ। घर आकर मन्त्री, सामन्त तथा कुटुम्बियोंका दरबार कर उसमें वैराग्य ग्रहण करनेकी इच्छा प्रगट की। कुछ लोगोंने मना किया परन्तु नहीं माना । पिताकी इच्छा देख भरतने भी वैराग्य धारणकी कामना की। कैकयीने जब पति पुत्रको वैराग्य लेते देखा तब पुत्रको वैराग्यसे परांगमुख करनेके लिये राजसभामें आई और आधे सिंहासन पर बैठी। राना दशरथको वैराग्य न लेने के लिये समझाया। जब उन्होंने नहीं माना तब अपना वर चाहा । रानाने कहा कि " मांगो, तुम्हें क्या चाहिये ?" तब रानीने कहा कि राज्य मेरे पुत्रको दो । दशरथने स्वीकार किया । और रामचन्द्रको बुलाकर कहा कि " बेटा ! मैंने तेरी कैकयी माताके कार्यसे प्रसन्न हो एक