Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra Author(s): Prafullakumar Modi Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं प्रस्तावना 1 हस्तरेखाज्ञानका प्रचार भारतवर्ष में बहुत प्राचीन कालसे रहा है । पुराणोंमें, बौद्धों के पालि धर्मशास्त्रों में तथा जैनोंके प्राकृत आगमोंमें भी इसका उल्लेख पाया जाता है । संस्कृत में उसे सामुद्रिक शास्त्र कहा गया है और अग्निपुराण के अनुसार प्राचीन कालमें समुद्र ऋषि अपने शिष्य गर्गको इस विद्याका अध्ययन कराया था ( लक्षणं यत्समुद्रेण गर्गायोक्तं यथा पुरा --- अग्निपुराण) । वराहमिहिर ने भी अपने सुप्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता के महापुरुपलक्षण नामके सर्ग (६७-६९) में इसका उल्लेख किया है। यहां तक कि बृहत्संहिता के टीकाकार उत्पलभट्टने 'यथाह समुद्रः' कहकर बहुत से लोक समुद्र ऋषि प्रणीत उद्धृत किये हैं । हरिवंशपुराणके रचयिता जिनसेना - चार्य ने भी 'नरलक्षण' के कर्ताका उल्लेख किया है और उन्हीं लक्षणों का वर्णन हरिवंशपुराणके २३ वें सर्गके ५५ वें श्लोकसे १०७ वें श्लोक तक पाया जाता है उनमेंसे १३ (८५-९७ ) श्लोकोंका विषय हस्तलक्षण और उनकी सार्थकता है, अतः वे पूर्णतः हस्तरेखाज्ञानविषयक कहे जा सकते हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ हस्तरेखाज्ञान सम्बन्धी छोटी सी पुस्तिका है । इस ग्रन्थकी जो प्राचीन हस्तलिखित प्रति मुझे उपलब्ध हुई थी उस पर ग्रन्थका नाम 'सामुद्रिक शास्त्र' दिया गया है । किन्तु ग्रन्थका असली नाम 'करलक्खणं' है जैसा कि उसकी आदि और अन्तकी गाथाओंसे सुस्पष्ट हो जाता है । यह ग्रन्थ ६१ प्राकृत गाथाओं में पूर्ण हुआ है । ग्रन्थके विषयका सार निम्न प्रकार है प्रथम गाथा रचयिताने जिन भगवान् महावीरको प्रणाम कर पुरुष और स्त्रियोंके करलक्षणं कहने की प्रतिज्ञा की है । दूसरी गाथा के अनुसार पुरुषको लाभ व हानि, जीवन व मरण तथा जय व पराजय रेखानुसार ही प्राप्त होते हैं । गाथा ३ के अनुसार पुरुषोंके लक्षण उनके दाहिने हाथ में और स्त्रियोंके उनके बायें हाथमें देखकर शोधना चाहिये । इसके आगे कर्ताने अंगुलियोंके बीच अन्तरका फल वर्णन किया है ( गा० ४-५ ) ; फिर उनके पर्वों का वर्णन है ( गा० ६ ) ; तत्पश्चात् मणिबंधकी रेखाओंका उल्लेखकर ( गा० ७-११ ) विद्या, कुल, धन, रूप और आयुसूचक पांच रेखाओंका वर्णन किया है ( गा० १२-२२ ) । आगेकी ती गाथाओं में ( २३-२५) रेखाओंके आकार, रूप व रंगके अनुसार उनका फल बतलाया है । फिर अंगूठेके मूलमें यवोंका फल कहा गया है ( गा० २६-२७ ) तथा उनके द्वारा भाई, बहिन व पुत्रपुत्रियों की सूचना दी गई है ( गा० २८-३० ) । फिर लेखकने अंगूठेके नीचे यव, For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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