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करलक्खणं
कुल रेखाके ऊपर, प्रदेशिनीके मूलमें, जो रेखा हो वह उस पुरुषके गुरु और देवताका स्मरण रहेगा यह बतलाती है ।
( ४३ )
अङ्गलि-अङ्गुष्ठाग्रस्थभ्रमराणां फलम्अंगुलिअंगुठुवरिं हवंति भमराउ दाहिणावत्ता। धणभागी जणपुज्जो धम्ममई बुद्धिमंतो अ॥
अङ्गुल्यङ्गुष्ठोपरि भवन्ति भ्रमराः दक्षिणावर्ताः ।
धनभागी जनपूज्यः धर्मरतिः बुद्धिमान् च ॥ अँगुलियों और अंगूठेके ऊपर जिसके दाहिनी ओर घूमने वाली भौंरी हो वह धनका भोग करनेवाला, लोगोंमें पूज्य, धर्ममें मति रखने वाला और बुद्धिमान् होवे।
( ४४ ) पावइ पच्छा सुक्खं पच्छिममुहसंठिए सुणह संखे । अभंतराणणे पुण होहीसि णिरंतरं सोक्खं ॥
प्राप्नोति पश्चात् सौख्यं पश्चिममुखसंस्थितः शृणु शङ्खः ।
अभ्यंतरानने पुनः भविष्यति निरन्तरं सौख्यम् ॥ यदि अंगुलियों और अंगूठेपर पश्चिममुख स्थित शंख हो तो बुढ़ापेमें सुख मिले और यदि शंखका मुख भीतर को हो तो निरंतर सुख मिले ।
___( ४५ )
नखानां फलम्मज्झुण्णया य सोणा अप्फुडिया जस्स हुति करणहरा। सो राया धणवंतो विज्जाहिवई पसिद्धो अ॥
मध्योन्नताः च श्रोणा अस्फुटिताः यस्य भवन्ति करनखाः ।
स राजा धनवान् विद्याधिपतिः प्रसिद्धश्च ॥ जिसके हाथके नख बीचमें उठे हुए, लाल और अस्फुटित हों वह राजा होय, धनवान् होय, विद्यावान् होय और प्रसिद्ध होय ।
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