Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं अङ्गुष्ठकस्य मूले यावन्मात्राः स्थूलरेखाः । ते भवन्ति भ्रातरः किल तन्वीभिः भवन्ति भगिन्यः ॥ अंगूठेके मूल में जितनी स्थूल रेखाएँ हों उतने भाई होते हैं और जितनी सूक्ष्म रेखाएँ हों उतनी बहिन होती हैं। ( २९ ) पुत्रपुत्रिकाविषयेअंगुट्ठयस्य हिढे रेहाश्रो जस्स जत्तिा हुँति । तत्तिमित्ता पुत्ता तणुप्राहिं दारिया हुंति ॥ अङ्गुष्ठकस्य अधः रेखाः यस्य यावन्त्यः भवन्ति । तावन्मात्राः पुत्राः तन्वीभिः दारिकाः भवन्ति ॥ अंगूठेके अधोभागमें जिसके जितनी रेखाएँ हों उसके उतने ही पुत्र होते हैं । यदि रेखाएँ सूक्ष्म हों तो उतनी लड़कियाँ होती हैं। जत्तियमित्ता छिण्णा भिण्णा ते दारिश्रा मुत्रा जाण । अच्छिण्णा अभिण्णा जीवंति अ तत्तिा तणुश्रा॥ यावन्मात्राः छिन्नाः भिन्नाः ता दारिका मृताः जानीहि । अच्छिन्नाः अभिन्ना जीवन्ति च तावन्तः तनुजाः ॥ जितनी रेखाएँ छिन्न भिन्न हों उतनी सन्ताने मृत जानो। जितनी रेखाएँ अच्छिन्न और अभिन्न हों उतने बालक जीते हैं। अंगुट्ठयस्य हिढे अखंडे समफले जवे जस्स । तस्स य खाणं पाणं मल्लं सव्वत्थ संपयडइ ॥ अङ्गुष्ठकस्य अधः अखण्डः समफलः यवो यस्य । तस्य च खानं पानं माल्यं सर्वत्र संप्राप्नोति ॥ अंगूठेके अधोभागमें जिसके अखंड और समफल यव हों उसे खानपान और माला ( सन्मान ) सर्वत्र मिलते हैं । ३१-१ प्रतौ 'संप्रजायते' इति पाठः । For Private and Personal Use Only

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