Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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करलक्खणं
( ४९ )
पानं कुंते सोभग्गभोयलाहं च ।
मच्छे दामेण जुवल सिंहे सेावई होइ ॥
मत्स्येन अन्नपानं कुन्तेन सौभाग्यं भोगलाभं च । दाम्ना ऋजुबलित्वं सिंहे सेनापतिः भवति ॥
मछली अन्नपान मिलता है, कुन्त अर्थात् भालेसे सौभाग्य और भोगोंका लाभ, मालासे खूब बल तथा सिंहसे सेनापति होता है ।
( ५० )
होइ धणं धरणं व अ आ वसहे वि सत्थए सुक्खं । चक्केण होइ वरसर सरवत्थे इच्छया भोया ॥
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भवति धनं धान्यमपि च आज्ञा वृषभेऽपि स्वस्तिकैः सौख्यम् । चक्रेण भवति वरश्रीः श्रीवत्से ईप्सिताः भोगाः ॥
बैल के चिह्न से धन-धान्य और आज्ञा ( हुकूमत ) मिलते हैं । स्वस्तिक से सुख, चक्र से उत्तम लक्ष्मी और श्रीवत्ससे इच्छित भोग ।
( ५१ )
रजाभिसे पट्टे पावs भद्दासणं भवे जस्स । पावइ अांतसोक्खं गयचामरवज्जुबत्तेहिं ॥
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वराहमिहिर के अनुसार वज्राकार रेखाओंसे मनुष्य धनी होता है; मीनपुच्छसे विद्यावान् शंख, छत्र, शिविका, गज, अश्व और पद्माकार रेखाओंसे राजा ; कलश, मृणाल, पताका, अंकुशाकार रेखाओंसे ऐश्वर्यवान् ; चक्र, असि, परशु, तोमर, शक्ति, धनुष और कुन्तके आकारवाली रेखाओं से सेनापति ; ऊखलाकारसे यज्वान; मकर, ध्वजा, कोष्ठागारके आकार से महाधनी वेदीसदृशसे अग्निहोत्री और वापी, देवकुलादि त्रिकोणाकार रेखाओंसे धर्मवान् होता है । ( बृहत्संहिता ६७, ४४-४८ )
राज्याभिषेकपट्ट ं प्राप्नोति भद्रासनं भवेद् यस्य । प्राप्नोति अनन्तसौख्यं गजचामरवज्रछत्रैः ॥
१७
जिसके भद्रासनका चिह्न हो वह राज्याभिषेकपट्ट पावे; तथा गज, चामर, वज्र और छत्र चिह्नोंसे अनन्त सुख पावे |
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