Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org करलक्खणं ( २० ) ऊर्ध्व रेखाविषये गाथा - मणिबंधा पडा पत्ता चरिमंगुलिं तु जा रहा । साकुड़ जससमिद्धिं सिद्धिं वा विभवसंजुत्तं ॥ मणिबन्धात् प्रकटा प्राप्ता चरमाङ्गुलिं तु या रेखा । सा करोति यशः समृद्धिं श्रेष्ठिनं वा विभवसंयुक्तम् ॥ मणिबंधसे प्रकट होकर जो रेखा अन्तिम अर्थात् छोटी अंगुलि तक जाती है वह खूब यश दिलाती है और यदि पुरुष सेठ हो तो उसका खूब विभव बढ़ती है । ( २१ ) आयुरेखाफलम् - बीसं तीसं चत्ता पणासं सहि सत्तरिं असि । एउयं कणट्टियाऊ पएसिणं जाव जाणिज्जा ॥ विंशतिः त्रिंशत् चत्वारिंशत् पंचाशत् षष्टिः सप्ततिः अशीतिः । नवतिः कनिष्ठिकायाः आयुः प्रदेशनीं यावत् जानीयात् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनिष्ठिकासे लगाकर प्रदेशिनी तक रेखाके अनुसार बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी और नब्बे वर्षकी आयु जानो । अर्थात् छोटी अंगुली के प्रारम्भमें समाप्त हो जाने वाली रेखा बीस वर्षकी आयु सूचित करती है और उसके अंत तक जाने वाली तीस वर्ष की । इसी प्रकार अनामिकाके प्रारम्भ तक जाने वाली चालीस और अन्त तक जाने वाली पचास वर्षकी आयु बतलाती है । मध्यमा प्रारम्भ तक जाने वाली रेखासे साठ और अंत तक जाने वालीसे सत्तर वर्षकी आयुका बोध होता है, तथा प्रदेशिनीके प्रारम्भ तक अस्सी और अंत तक नब्बे वर्षकी आयु मानी जाती है । ( २२ ) काणंगुलीइ रेहा पएसिणं लंघिऊण जस्स गया । अखंडिया अफुडिया वरिसाए सयं च सो जियइ ॥ For Private and Personal Use Only

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