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करलक्खणं
वराहमिहिरने नखोंके स्वरूपका फल इस प्रकार बताया है-जिनके नख तुषके समान ( अर्थात् धानके वल्कलके समान बहुरेखायुक्त और रूखे ) हों वे नपुंसक होते हैं, जिनके चपटे और फटे हों वे धनहीन, जिनके बुरे विवर्ण ( आभा रहित ) हों वे परमुखापेक्षी तथा जिनके ताम्रवर्ण हों वे सेनापति होते हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ४१)
( ४६ )
मत्स्यादिफलविषये गाथासप्तकम् - बाहिरमुहसंठाणे मच्छपये' मीनसे (?) फलं होइ। अभंतराणणे पुण होहत्ति णिरंतरं सुक्खं ॥
बहिर्मुखसंस्थाने मत्स्यपदे मीनसे (१) फलं भवति ।
अभ्यन्तरानने पुनः भविष्यति निरन्तरं सौख्यम् ॥ यदि बाहरको मुख किये हुए मछलीका चिह्न हो तो बुढ़ापेमें (१) फल दे और यदि भीतरको मुखवाली मछली हो तो निरन्तर सुख होवे ।
( ४७ ) वरपउमसंखसत्तियभदासणकुंकुमत्थिभयकुंभं। वसहगयछत्तचामर दीसहइ वज्जं च मगरं च ॥
वरपद्मशङ्खस्वस्तिकभद्रासनकुङ्कुमजलकुम्भाः । वृषभगजछत्रचामराणि दृश्यते वज्रं च मकरश्च ।।
( ४८ ) तोरण-विमाण-केऊ जस्सेए होंति करयले पयडा। तस्स पुण रज्जलाहो होही अचिरेण कालेण ॥
तोरणविमानकेतवः यस्य एते भवन्ति करतले प्रकटाः ।
तस्य पुनः राज्यलाभः भवति अचिरेण कालेन ॥ श्रेष्ठ पद्म, शंख, स्वस्तिक, भद्रासन, कुंकुम, जलकुंभ, बैल, गज, छत्र, चामर, वज्र, मगर, तोरण, विमान और केतु ये जिसके करतलमें दिखायी पड़ें उसे बहुत शीघ्र राज्य मिले।
४६-१ प्रतौ 'संठाणयम्मि मच्छपय' इति पाठः ।
४४-१ प्रतौ 'वज्जमगरं च' इति पाठः।
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