Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं यदि ताः दक्षिणकरे आमूलतः अपि भवन्ति जनपूज्यः । अथ वामे तत्पश्चात्सर्वेषां सेवनीयः ( सेवकः ) ॥ यदि ये रेखाएँ दाहिने हाथमें हों तो प्रारम्भसे ही लोग उसकी पूजा करें और यदि बायें हाथमें हों तो पीछे अर्थात् बुढ़ापेमें सब लोग उसकी सेवा करें। व्रतरेखाफलविषये गाथाजिट्ठाप्रणामित्राणं मझायो णिग्गयाउ वयरेहा । तम्मूले जाश्रो पुण ताश्रो इह धम्मरेहाश्रो॥ ज्येष्ठानामिकयोः मध्ये निर्गता. व्रतरेखाः । तन्मूले याः पुनः ताः इह धर्मरेखाः ॥ ज्येष्ठा और अनामिकाके बीचसे निकलने वाली 'व्रतरेखाएँ कहलाती हैं, तथा जो उनके मूल में प्रकट होती हैं वे 'धर्मरेखाएँ' कहलाती हैं। ( ४१ ) मार्गणरेखातासुवरि तिरित्था जा सा पुण मग्गत्तणे भवे रेहा । अप्फुडिआपल्लवदीहराहिं सो चेव तत्थ थिरो॥ तस्याः उपरि तिर्यवस्था या सा पुनः मार्गत्वेन भवेत् रेखा । अस्फुटितापल्लवितदीर्घाभिः स एव तत्र स्थिरः ॥ धमरेखाके ऊपर जो तिरछी रेखा हो वह 'मार्गण' अर्थात् खोज करने वाले की सूचक रेखा है । जिसके यह अस्फुटित, अपल्लवित और दीर्घ हो वह उसी कार्यमें स्थिर रहे। ( ४२ ) कुलरेहाए उवरि मूलम्मि पएसिणीइ जा रहा। गुरुदेवसमरणं तस्स सा वि णिदेसइ पुरिसस्स ॥ __ कुलरेखायाः उपरि मूले प्रदेशिन्याः' या रेखा । गुरुदेवस्मरणं तस्य सापि निर्दिशति पुरुषस्य ॥ ४२-१ प्रतौ 'प्रवेशिनी' इति पाठः । For Private and Personal Use Only

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