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कर लक्खणं
एकपरिक्षिप्ता पुनः यवमाला दृश्यते स्वमणिबन्धे । श्रेष्ठी धनेश्वरः भवति तथा च जनपूजितः पुरुषः ॥
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और जिसके मणिबंध में यवमालाकी एक ही धारा दिखे वह धनेश्वर सेठ बनता है और सब लोग उसकी पूजा करते हैं ।
( १२ )
विज्जाकुलधणरूवं रेहति श्राउ- उडरेहाथो । पंच व रेहा करे जणस्स पयडंति पुव्वकयं ॥
गयी हो
विद्याकुलधनरूपं रेखात्रितकं आयुः ऊर्ध्व रेखा । पञ्चापि रेखा करे जनस्य प्रणयन्ति पूर्वकृतम् ॥
पुरुषके हाथकी पंचरेखाएं उसके पूर्वजन्म के कर्मोंको सूचित करती हैं । इनमें तीन विद्या, कुल और धनरूप हैं, एक आयुकी रेखा और एक ऊर्ध्व रेखा ।
करतल अर्थात् हाथके तलुए के स्वरूपका फल वराहमिहिर ने इस प्रकार बताया है - तलुआ गहराई लिये होनेसे मनुष्य पैत्रिक संपत्ति से वञ्चित रहते हैं, गहराई गुलाई लिये होनेसे धनी होते हैं तथा तलुआ ऊपरको उठा हुआ होनेसे दातार होते हैं । जिनका तलुआ विषम अर्थात् ऊँचा नीचा हो वे निर्धन होते हैं । जिनका लाल हो वे ईश्वर (धनी), जिनका पीला हो वे व्यभिचारी तथा जिनका रूखा हो वे निर्धन होते हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ३९-४० )
( १३ )
विद्यारेखा
१२. १ प्रतौ 'पणयंति' इति पाठः ।
जिनसेनाचार्य ने भी इसी प्रकार लक्षण बतलाये हैं । इतना विशेष है कि वे गहराई लिये तलुवालेको नपुंसक भी कहते हैं । ( हरिवंश पुराण २३, ९१ )
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तथाहि - मणिबंधा रेहा अंगुट्टपरसिणीण मज्झगया । सा कुइ सत्थजुत्तं विणा विक्खणं पुरिसं ॥
मणिबन्धात् रेखा अङ्गुष्ठप्रदेशिन्योः मध्यगताः ।
स करोति शास्त्रयुक्त विज्ञानविचक्षणं पुरुषम् ॥
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