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करलक्खणं
हाथोंके स्वरूपका फल वराहमिहिरने इस प्रकार बताया है जिनके
हाथ बारसदृश हों वे धनी और जिनके व्याघ्रके समान हों वे पापी होते हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ३७ )
( ४ )
अङ्गुल्यन्तरफलम्
बालत्तणम्मि सुलहं पएसिणी - मज्झमंतरघणम्मि । मज्झिम-प्रणामियाणंतरम्मिं तरुणत्तणे सुक्खं ॥
बालत्वे सुलभं प्रदेशिनीमध्यमान्तरधने ।
मध्यमाऽनामिकयोः अन्तरे सघने तरुणत्वे सौख्यम् ||
यदि प्रदेशिनी और मध्यकी अंगुलियोंका अंतर सघन हो ( अर्थात् वे एक दूसरे से मिली हों और मिलने से उनके बीच में कोई अन्तर न रहे ) तो बालकपन में सुख होवे । यदि मध्यमा और अनामिका के बीच सघन अंतर हो तो जवानीमें सुख हो
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हाथ की अंगुलियोंका फल वराहमिहिर ने इस प्रकार बताया है-लम्बी अंगुलियां दीर्घजीवियोंकी, अवलित ( सीधी ) सुभगोंकी, सूक्ष्म ( पतली ) बुद्धिमानोंकी और चपटी दूसरोंकी सेवा करने वालोंकी होती हैं। मोटी अंगुलियों वाले निर्धन और बाहरको झुकी अंगुलियों वाले शस्त्रसे मरने वाले होते हैं । (बृहत्संहिता ६७, ३६-३७ )
विरली अंगुलियों से मनुष्य निर्धन तथा सघनसे धनसंचय करने वाले होते हैं । (बृहत्संहिता ६७, ४३ )
( ५ )
पावर पच्छा सुक्खं कणिट्ठियाणामितरघणम्मि । सव्वंगुलीघणम्मि होइ सुही धणसमिद्धो ॥
प्राप्नोति पश्चात् सौख्यं कनिष्ठिका ऽनामिकान्तरघने । सर्वाङ्गुलीघने च भवति सुखी धनसमृद्धश्च ॥
४. १ प्रतौ '० तरणम्मि' इति पाठः ।
५. १ प्रतौ 'कनिष्ठिकानामिकयोः अन्तरघने' इति पाठः ।
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