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करलक्खणं
( ३२ ) अंगुट्ठयस्स मज्झ केदारं जइ हविज पुरिसस्स । सो होइ सुक्खभागी पावइ पुण खत्तिश्रो रज्जं ॥
अङ्गष्ठकस्य मध्ये केदारं भवेत् पुरुषस्य ।
स भवति सौख्यभागी प्राप्नोति पुनः क्षत्रियः राज्यम् ॥ अंगूठेके मध्यमें यदि केदार होवे तो वह पुरुष सुखभोग पाता है। और यदि क्षत्रिय होय तो राज्य पावे ।
केप्रारमइगयाश्रो रेहायो जत्तिाउ दीसंति । तित्ताइं बंधणाई पावइ अत्थक्खयं पुरिसो॥
केदारमतिगताः रेखाः यावन्त्यः दृश्यन्ते ।
तावन्ति बन्धनानि प्राप्नोति अर्थक्षयं पुरुषः ।। - केदारको काटकर जाती हुई जितनी रेखाएँ दिखें, पुरुष उतने ही बार गिरफ्तारी ( जेलखाना ) भोगे और धनका क्षय हो।
अंगुट्टयस्य मूले कागपयं होइ जस्स पुरिसस्स । सो पच्छिमम्मि काले सूलेण विवजए पुरिसो॥ ___अङ्गुष्ठकस्य मूले काकपदं भवति यस्य पुरुषस्य ।
स पश्चिमे काले शूलेन विपद्यते पुरुषः ॥ जिस पुरुषके अंगूठेके मूलमें काकपद हो वह बुढापेमें शूली पाकर मरे ।
( ३५ ) दाहिणहत्थंगुट्ठयमज्झे अ जवेण जाण दिण जायं । वामंगुट्ठजवेणं णूणं जाणिज णिसि जायं ॥
दक्षिणहस्ताङ्गुष्ठकमध्ये च यवेन जानीहि दिने जातम् ।
वामाङ्गुष्ठयवेन नूनं जानीयात् निशि जातम् ॥ दाहिने अंगूठेके मध्यमें यव होय तो दिनमें उसका जन्म हुआ है ऐसा जानो, और बायें अंगूठेके यवसे रात्रिका जन्म समझो ।
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