Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २ www.kobatirth.org - कर लक्खणं कनीनिकाङ्गुलिरेखा प्रदेशिनीं लङ्घयित्वा यस्य गता । अखण्डिता अस्फुटिता वर्षाणां शतं च स जीवति ॥ कनीनिकासे चलने वाली जिसकी रेखा प्रदेशिनीको पार कर जाती है और अखंडित हो, फूटी न हो, वह सौ वर्ष जीता है । ( २३ ) द्वारगाथा पल्लवा विच्छिणा विरला विसमा य सिद्दिसे रेहा | हरिया फुडित्र विवरणा नीला रुक्खा तहा चेव || पल्लविता विच्छिन्ना विरला विषमा च निर्दिशेत् रेखा । हरिता स्फुटिता विवर्णा नीला रूक्षा तथा चैव ॥ रेखाके स्वरूप इस प्रकार बताये गये हैं- पल्लवित, विच्छिन्न, विरल, विषम, हरित, स्फुटित, विवर्ण, नील और रूक्ष । ( २४ आयुर्धनरेखा पल्लविया सकिलेसा विवरणा सु पावए महादुक्खं । विरला धणव्वयकरी पीइधणं णत्थि विसमासु ॥ पल्लविता सक्लेशा विच्छिन्नासु प्राप्नोति महादुःखम् । विरला धनव्ययकरी नीतिधनं नास्ति विषमासु || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पल्लवित रेखा क्लेशदायिनी होती है, विच्छिन्न रेखा महादुःख पहुँचाती है, विरल रेखा धनका व्यय कराती है और विषमसे नीतिपूर्वक अर्जित धन नहीं होता । ( २५ ) हरियासु चोरियधणं फुडि विवरणा बंधणमुवे पीला frogsणो' रुक्खासु मिभोगभागी हरितासु चौर्यधनं स्फुटितविवर्णासु बन्धनमुपैति । नीला निर्विण्णः रूक्षासु मितभोगभागी च ॥ । For Private and Personal Use Only | २३- १ प्रतौ 'णिह से' इति पाठः । २ प्रतौ 'निर्दिशति' इति पाठः । ३ प्रतौ 'एवम्' इति पाठः । २५- १ प्रतौ 'णिवुईष्णो' इति पाठः । १८

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