Book Title: Karlakkhan Samudrik Shastra
Author(s): Prafullakumar Modi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करलक्खणं हरितसे धन चोरी चला जाता है, ( अथवा चोरीका धन मिलता है); स्फुटित और विवर्णसे बंधन अर्थात् गिरफ्तारी भोगना पड़ता है, नीलसे निर्विण्ण अर्थात् उदास रहता है और रूक्षसे परिमित भोग भोगनेको मिलते हैं । ___वराहमिहिरके अनुसार चिकनी और गहरी रेखाएं धनी पुरुषोंकी तथा इससे विपरीत निर्धनोंकी होती हैं । ( बृहत्संहिता ६७, ४३ ) ( २६ ) अगुष्ठफलसम्बन्धिरेखाविषये गाथानवकम् अङ्गुष्ठस्य मणिबन्धफलम्अंगुट्ठयस्य मूले या तिपरिखित्ता समे जवे जस्स । सो होइ धणाइण्णो खत्तिय पुण पत्थिश्रो होइ । अङ्गुष्ठकस्य मूले या त्रिपरिक्षिप्ताः समा यवाः यस्य । । स भवति धनाकीर्णः क्षत्रियः पुनः पार्थिवः भवति ॥ अंगूठेके मूलमें जिसके तीन समान यव हों वह धनवान होता है, और यदि क्षत्रिय हो तो राजा.बनता है। (२७ ) - दुप्परिक्खित्ताइ पुणो णरवइसमपुज्जित्रो गरो होइ। एगपरिक्खित्ताए जवमालाए धणेसरो होइ ॥ द्विपरिक्षिप्तया पुनः नरपतिशतपूजितः नरः भवति । एकपरिक्षिप्तया यवमालया धनेश्वरः भवति ॥ यदि दो यव हों तो पुरुष सैकड़ों नरेशोंसे पूजा जाता है, और यदि एक ही यवमालाकी धारा हो तो वह धनेश्वर होता है। वराहमिहिरने अंगूठेके यवोंका फल इस प्रकार बताया है--अंगूठेके बीचके यवोंसे मनुष्य धनी और अंगूठेके मूलके यवोंसे पुत्रवान् होता है। ( बृहत्संहिता ६७, ४२) ( २८ ) अंगुट्टयस्स मूले जत्तिअमित्ताउ थूलरेहायो। ते इंति भाविश्रा किर तणुप्राहिं होंति बहिणीश्रो॥ For Private and Personal Use Only

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