Book Title: Jain Yogki Varnmala Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan View full book textPage 9
________________ लघु पुस्तकों की श्रृंखला में यह नवमीं पुस्तक है। इसकी पृष्ठभूमि में साध्वी विश्रुतविभा का आग्रह जीवंत रहा है। इस पुस्तक के संपादन में उसने अतिरिक्त श्रम किया है। उत्तर का श्रम मूल को अनिर्वचनीय आकार दे सकता है। प्रस्तुत श्रृंखला के नियोजन में मुनि धनंजयकुमार का निष्ठापूर्ण योग रहा है। समणी विनीतप्रज्ञा आदि समणियों ने प्रूफ निरीक्षण का कार्य तन्मयता से किया है। -आचार्य महाप्रज्ञ २२ जनवरी, २.००७ गंगाशहर (बीकानेर)Page Navigation
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