Book Title: Jain Yogki Varnmala
Author(s): Mahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati Prakashan

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Page 7
________________ आदि ग्रंथों को हठयोग की कोटि में रखा जा सकता है। आचार्य हरिभद्र के अनेक ग्रंथ योग विद्या के क्षेत्र में नई दृष्टि देने वाले हैं। आचार्य तुलसी के 'मनोनुशासनम्' को भी इसी कोटि में रखा जा सकता है। उक्त विवरण के आधार पर हम जान सकते हैं कि योग विद्या भारत की बहुत प्राचीन विद्या है। ___ योग का उद्देश्य रहा आध्यात्मिक चेतना का विकास और आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण। लक्ष्य के अनुरूप परिभाषाएं बनीं१. योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। पातञ्जल योग दर्शन १.२ २. समत्वं योग उच्यते। गीता ३. मोक्षोपायो योगः ज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः । अभिधान चिंतामणि १.७७ ४. मनो-वाक्-काय-आनापान-इन्द्रिय-आहाराणं निरोधो योगः। मनोनुशासनम् १.११ उत्तरकाल में योग की अनेक शाखाएं विकसित हुई हैं। उनमें चार प्रमुख हैं१. हठयोग २. मंत्रयोग ३. लययोग ४. राजयोग इनमें उद्देश्य का विकास परिलक्षित होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम और आसन प्रमुख बन गए तथा यम, नियम गौण हो गए। 'हठयोग प्रदीपिका' में प्राणायाम आदि के द्वारा सब रोगों के

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