Book Title: Digambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi Author(s): Jiyalal Jain Publisher: Jiyalal Jain View full book textPage 5
________________ लेखक की प्रार्थना संसार अशान्तिका घर है। सुख-शान्ति प्राप्ति के लिये प्रत्येक जीव लालायित रहता है ; परन्तु सुखशांति किन्हीं मन्दकषाय वालों को ही प्राप्त होती है। जिन्होंने कषायों पर विजय प्राप्त कर लिया है, वे वीतराग हैं। पूर्ण सुखी हैं। अतःसुख-शान्ति प्राप्त करने के लिये मुमुक्षु को कषायों पर विजय प्राप्ति हेतु प्रथम ही षट्कर्मों का पालन आवश्यक है । जिसके पालन के लिये सत्पात्र को दान देना भी अति आवश्यक है। अस्तु इस पुस्तक "मुनि तथा आहार दान"में सपात्रको आहार देने की विधि बताने का प्रयास किया गया हैं। इस विषयपर हमारे अनेक आचार्यों, विद्वानों आदि द्वारा रचित अनेकों विशाल ग्रंथ हैं किन्तु यह पुस्तक लघु होते हुये भी श्रावक के हित में सिद्ध होगी ऐसी मुझे आशा है। इस अभिप्राय को मनमें धारण कर मेरी इच्छा दीर्घ काल से मुनि प्राहार विधि को भली भांति जानने की थी । अतः सतत प्रयत्न किया और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40