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* सात अज्ञान, ५. प्रशंसा
होता है। सत्पात्र को श्रद्धा सहित, निज शास्त्र के अनुकूल हो। आहार विधिवत दीजिये, करिये न किंचित भूल भी। धर्मज्ञ जो आये उन्हें, भोजन कराये चाव से। भूखे अनाथों को खिलाये, नित्य करुणा भाव से ॥
दाता के सात गुण १- श्रद्धा, २. भक्ति, ३- संतोष, ४- विज्ञान, ५-क्षमा; ६- सत्व, ७. निर्लोभिता इन सात गुरण युक्त दातार ही प्रशंसा के योग्य हैं। श्रद्धा- आज मेरा अहो भाग्य है जो मेरे घर पर ऐसे वीतराग साधु पधारे जिससे मैं, मेरा कुटुम्ब आदि सभी सफल हो गये। मैंने अतिथि संविभाग का सौभाग्य पाया इत्यादि भाव होना श्रद्धा है। २ भक्ति- ऐसा भाव नहीं रखना कि अमुक साधु आये अमुक नहीं आये । जो भो आये उसको भक्ति पूर्वक आहार देना भक्ति गुण है। ३ सन्तोष- स्वयं आहार देना जाने, दूसरा नहीं जाने सो घमड नहीं करना चाहिये । यदि दूसरे घर साधू का अहार हो गया अपने घर पर नहीं हुअा इत्यादि रूप में असन्तुष्ट न होना। आहार का योग न मिलने पर भी सतोष रखना। इत्यादि । ४ विज्ञान-आहार देने की विधि को ठीक ठीक जानना ऋतु और पात्र की प्रकृति आदि जानकर योग्य वस्तुका आहार देना विज्ञान गुण है। ५ निलो भिता-दान देकर इस लोक तथा परलोक सम्बन्धी फल की वांछा नहीं करना ।
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