Book Title: Digambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Author(s): Jiyalal Jain
Publisher: Jiyalal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ पुरुष या स्त्री, रजस्वला स्त्री, तीन मास से अधिक गर्भवती स्त्री, धूम्रपान करने वाला पुरुष या मद्य मांस मधु भक्षी पुरुष, वेश्यागामी, रोगी, प्रतिवृद्ध पुरुष जातिच्युत पुरुष, दुराचारी पुरुष आदि प्राचार मलिन पुरुषों के यहाँ आहार नहीं लेते हैं । अतिथि संविभाग व्रत के पाँच अतिचार १- सचित्त निक्षेप २ सचित्त विधान ३- परव्यपदेश ४- मात्सर्य ५- कालातिक्रम । यह भगवान उमा स्वामी तथा समंत भद्र स्वामी के वचनानुसार अतिथिसंविभाग के पाँच प्रतिचार है । १- सचित्त निक्षेप - सचित्त कहते हैं चेतना सहित जो वस्तु हो उस वस्तु से सम्पर्क मिलाना अतिचार है । जैसे पेड़ से तोडे हुये पत्र कमलादि के पत्र सचित्त हैं तथा जबकि गीलेपन का सम्पर्क है: पृथ्वी ( गीली मिट्टी ) धान्य प्रादि तथा खरवूजा, ककड़ी, नारंगी, केला, आम, सेव आदि के चाकू से गट्टे तो बना लिये हो परन्तु उसमें कोई तिक्त द्रव्य नहीं मिलाया हो और न उनको गर्म किया हो ऐसे पदार्थ सचित्त हैं । उनको त्यागी लोग नहीं ले सकते । पदार्थों के गट्टे या नीबू के दो पले करके ही प्रचित्त पना नहीं आ सकता, क्योंकि वनस्पति के शरीर की अवगाहना प्राचार्यों ने असंख्यातवें भाग मानी हैं । और वह जो गट्टा किये है वह बादाम के बराबर बड़े हैं जो कि विना अग्नि पर चढ़ाये या यन्त्र से पेले विना श्रचित्त नहीं हो सकते । जैसे सोठे (गन्ना) का रस निकाले या पत्थर से चटनी वांटे ऐसे किये विना जो लेता या देता है, वह प्रतिचार माना है । - २४ -u Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40