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ठोकना, खेलना, हँसना, गर्व करना, जंभाई लेना, शरीर मोड़ना, झूठ बोलना, ताली बजाना तथा शरीर के अन्य विकार करना, शरीर संस्कारित करना इत्यादि क्रियायें करना गुरु के समोप वर्जित है ।
अधः कर्म
दोष
ऊखली, चक्की, चूल्हा, परडा और बुहारी ये पाच सूना अर्थात हिंसा के स्थान है । यह गृहस्थाश्रित प्रारम्भ कर्म है । इसे अधः कर्म कहते हैं । यद्यपि यह दोष गृहस्थ के आश्रित ही है । अतः चौका, चक्की इन पर चंदोवा होना चाहिए तथा झाडू, ओखलीको किसी कपड़े आदि से ढक देना चाहिये । भोजन करने य बनाने दोनों स्थानों पर चंदोवा लगा होना चाहिये । चौका व भोजन करने के स्थान पर अँधेरा न हो । चौकेसे आहार का स्थान इतनी दूर पर हो कि वहाँ का पानी आदि के छींटे चौके में न जावें ।
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आहार से प्रथम निम्न बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिये
१ - चूल्हे के भीतर अग्नि होती है । उस पर पानी भरा वर्तन ढका हुआ अवश्य रक्खा हो । घुंआं न होता हो । २- चौके में कोई चीज उघाड़ी ( खुली) न हो ।
३- चौके में जो भी सामग्री या चौका, पाटा, आदि लगाये जावे हिले डुलें नहीं ।
४- भोजन के वर्तन में सचित्त वस्तु नहीं रखना चाहिये । . ५- चोके में हर वस्तु घुली शुद्ध और साफ हो ।
६. चूल्हे के ऊपर जो पानी रक्खा हो वह यति के भोजन के समय उबालना नहीं चाहिये ।
७. जिन पदार्थों के गुट्टे (टुकड़े) किये जाते हैं । जैसे पका
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