Book Title: Digambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Author(s): Jiyalal Jain
Publisher: Jiyalal Jain

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Page 24
________________ प्राप्ति होती है । उपासना करने से यशोलाम, प्रशंसा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। भक्ति करने से निरोगता और सुन्दर रूप जो देवों को भी दुर्लभ प्राप्त होता है। जैसे सनतकुमार चक्रवर्ती को प्राप्त हुआ था। उनकी स्तुति करने से स्वयं अनेक पुरुषोंसे स्तुत्य हो जाता है। जैसे रामचन्द्र, लक्ष्मण, नारायण, बलभद्र आदि ने स्तुत्य पद पाया था अतः ऐसे साधुओं की सदा सेवा भक्ति, परिचर्या और वैय्यावृत्ति करनी चाहिये यह श्रावक का मुख्य कर्म है। . . मुनियों की शरीर रक्षा पर क्या क्या ध्यान देना चाहिये १. साधू के पास जीव दया के उपकरण एवं साधन पीछी आदि समुचित है या नहीं। २. मुनि के पास कमण्डलु ठीक है या नहीं। ३- मुनि कौन सा शास्त्र पढ़ते हैं । अथवा इनके पास शास्त्र है या नहीं एवं शास्त्र को साधु बदलना चाहते है या जीर्ण शीर्ण हैं । तो क्या नया लेना चाहते हैं। ४- साधुओं के ठहरने का स्थान समुचित है या नहीं। ५. यथायोग्य रोग की परीक्षा करना। ६. समयानुसार प्रकृति के अनुकूल परीक्षा कर आहार दान देना। ७. जहां पर व्रती पुरुष हो वहाँ पर सुशासन की व्यवस्था करना इसके अतिरिक्त आर्यिका के लिए साड़ी, ऐलक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी के लिए यथा योग्य वस्त्र, पुस्तक, कमण्डल, चटाई आदि की व्यवस्था करना। गुरुओं के समीप त्याज्य क्रियाये थूकना, गर्व करना, भूठा दोष आरोपण करना, हाथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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