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६क्षमा- आहार देते समय यदि साधु को अन्तराय हो जावे या किसी विशेष कारण से पात्र विना आहार लिये घर से चला जावे, अथवा अन्य कोई कारण बन जावे तो क्रोध नहीं करना ।
७ सत्व- साधु से मन,वचन,काय शुद्ध कहना पड़ता है । इसके लिये आहार के समय पूर्ण सत्यमय प्रवृति रखना, नव कोटि सत्य का पालन करना सत्य नाम गुण है। आहार के समय दातार द्वारा नवधा-भक्ति
१- प्रतिग्रह (पडगाहना), २- उच्च आसन, ३- पाद प्रक्षालन ४- पूजन, ५- नमस्कार, ६. मन शुद्धि, ७- वचन शुद्धि, ८- काय शुद्धि और ह-आहार जल शूद्धि ये नव प्रकार की भक्ति कहलाती हैं। १ प्रतिग्रह- भो स्वामिन ! नमोस्तु, अत्र तिष्ट तिष्ट । इस प्रकार वोल कर साधु को पडगाहना आहार ग्रहण करने के लिये प्रार्थना करना । यदि मुनि रुक जावे तो घरके भीतर लिवा जावे आगे आगे स्वयं चलना पीछे मुनि चल देवेगे । उस समय पीठ देकर चल रहा है ऐसा दोष नहीं मानना चाहिये। क्योंकि पीठ देना वह कहलाता है कि पात्र तो घर पर आवे और आप मुंह फेर ले या देख करे पडगाहन न करे। २ उक्च स्थान--- मुनि को घर में लाने के बाद जीव जन्तु रहित शुद्ध स्थान (चौकी, कुर्सी आदि ) ऊँचे स्थान पर बैठना कहे-हे स्वामिन उच्च स्थान ग्रहण कीजिये। ३ पाद प्रक्षाल- मुनि के पैरों को प्रासुक जल से इस प्रकार धोवे कि तलवे आदि सूखे न रहें। ४ पूजन- जल, चंदन आदि अष्ट द्रव्यों से अथवा समय पर एक दो जो भी द्रव्य हो उनसे पूजन करना । यदि पूजन का समय न हो तो निम्न प्रकार बोल कर अर्घ चढ़ाना चाहिये।
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