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सदा के लिए सुखी हो जाते हैं । वे ही साधु धन्य गिने गये हैं। जो एक ग्रास, दो ग्रास एक उपवास पक्ष, मास, छै मास, एक वर्ष तक के उपवास करते तथा अंगुष्ठ का सहारा लेकर खड़े रहते हैं। उनको सिद्धांतों में तपस्वी कहा है।
शेक्ष के लक्षण जो श्र त ज्ञान के अभ्यास में अपनी आत्मा को लगाकर ज्ञान को वृद्धि कर मोक्ष में प्रवृत हो, जिससे संसार घटे और आत्म शक्ति बढ़े वही शक्षों का कार्य है।
ग्लान के लक्षण असाता आदि कर्मों के निमित्त से जिनका शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित क्लेश सहित है, परन्तु फिर भी रोगों के उपचार में जिनकी भावना नहीं है, वे मुनि ग्लान कहलाते हैं ।
गण के लक्षण जिनका अध्ययन करने से बहुत बढ़ा चढ़ा हो और महन्त (बड़े) मुनियों की गिनती हो सो गण कहलाते हैं।
वर्तमान प्राचार्यों की दीक्षा सहित जो शिष्य हो सो कुल कहलाते हैं।
चार प्रकार का संघ जैसे मुनि, आर्यका, श्रावक, श्राविका अथवा यति, मुनि, अनगार और साधु अथवा देव ऋषि, राज ऋषि, ऋद्धि ऋषि और ब्रह्म ऋषि इस प्रकार संघ कहलाता
माध जो मुनि बहुत काल से दीक्षित हो और जिसने बहुत प्रकार
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