Book Title: Digambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Author(s): Jiyalal Jain
Publisher: Jiyalal Jain

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Page 30
________________ ३ दिन पूरा ७ दिन दही मर्यादा युक्त दूध में जामन दिया गया है । तभी से दही की मर्यादा ८ पहर को समझना चाहिये । छाछ की मर्यादा - दही को मर्यादा के अन्दर ही छाछ बना लेना चाहिये अत्यन्त गर्म जल डालकर बनाई हुई छाछ पहर कुछ गर्म जल डाल कर बनाई हुई छाछ ४ पहर व शीतल जल से बनीं छाछ की मर्यादा २ पहर की होती है । घी - नैनी (लूनी) निकाल अन्तर्मुहूर्त में तपाकर घी बना लेना चाहिये । ऐसा घी जब तक चलित रस न हो तब तक कार्य मैं लेना चाहिये, उक्त घी जब तक गन्ध न बदले तब तक मर्यादा युक्त । तेल की मर्यादा गन्ध न बदले तब तक की है । 1 दही में गुढ़, शक्कर मिलने पर उसकी मर्यादा एक मुहूर्त है । जल - कुत्रां, वावड़ी, नदी आदि के जल को छानकर उप योग में लाने के लिए २ घड़ी की मर्यादा है । धर्म जल १२ घंटे तथा खूब उबला जल ८ प्रहर की मर्यादा है। बनाई हुई वस्तुओं की मर्यादा १- पानी से बनी दाल, भात, कड़ी जो आमचूर आदि द्रव्य से बनो हो, खिचड़ी एवं झोल वाला शाक आदि तथा सचित्त जल, मठ्ठा आदि पदार्थों की दो पहर मर्यादा है । २- रोटी, पूड़ी, हलुप्रा, माल पुत्रा, खीर, अचार, मगोड़ी दाल बड़े आदि की चार पहर मर्यादा है । ३- सुखाकर तली हुई पूड़ी, शक्कर पारे, खाजा, बूँदी, खोया की मिठाई गुलाब जामुन आदि दोपहर मर्यादा है । द्विदल जिन पदार्थों की (अनाज) दो दालें (फाडे) होती हो ऐसे अम्न को (मूंग, उड़द, चना आदि) या काष्ट को (मेथी, लाल मिर्च के बीज, भिण्डी, तोरई, आदि के बीजों को) दूध, दही और छाछ में मिश्रित करना प्राचार्यों ने द्विदल कहा है । उक्त - १६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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