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करता है। उसी प्रकार जैसा भोजन किया जाता है, उसी प्रकार की बुद्धि हो जाती है।
वस्त्र शुद्धि __ चौके के अन्दर गीले कपड़े नहीं ले जाने चाहिये, क्योंकि प्राचार्यों ने उसकों चमड़े के समान बताया है। उसमें शरीर की गर्मी तथा बाहर की हवा लगने से अन्तमुहूर्त में अनन्त सम्मूर्छन निगोदिया जीव उत्पन्न होते रहते है । और वे स्वांस के १८ वे भाग में उत्पन्न होकर मरते हैं । अतः अधिक हिंसा का पाप लगता है । इस कारण चौके में कभी गीला कपड़ा पहन कर नहीं जाना चाहिये इसी भांति विलायती रंग से रंगा हुअा कपड़ा भी चौके में नहीं पहनना चाहिये । क्योंकि रंग अप. वित्र है । चौके में वस्त्र शुद्ध और स्वच्छ होना चाहिये ।
टूटी (नल) के जल का निषेध नल में अनन्त काय जीवों का कलेवर होने से यह चलित रस हो जाता है । क्योंकि नल में पानी ठण्डा और गर्म रूप से रहता है। इस कारण दोनों के मिश्रित रहने के कारण जीवोत्पति मानी गई है । यही कारण है कि नल के पानी का त्याग करना चाहिये । नदी, कुप्रां, झरना और सोते का पानी पीने योग्य है। जिस जल में गन्ध आने लगे यह जल पीने योग्य नहीं।
कण्ड़े गोबर के छाणे (कण्डे) चौके में ले जाने योग्य नहीं क्योंकि यह पशु का मल है व इसमें त्रस राशि उत्पन्न होती है । इसलिये महान हिंसा होती है । आयुर्वेद में कहा है कि जमीन को गोबर से लीपने पर ६ इंच तक के जीव उसके खार से नष्ट हो जाते हैं । ऐसा होने से वहाँ से वहां पर रहने वाले नीरोग्य रहते है।
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