________________
लगायीं। एक दृष्टि से बड़ी छोटी-श्रवणमात्रेण। एक शब्द भी कान में पड़ गया हो तो जगाने के लिए पर्याप्त। ____ मौलिक बात एक ही है कि किसी भांति द्वंद्व के पार हो जाओ, द्वंद्वातीत हो जाओ, तो महासुख की वर्षा हो जाए।"
जब दो दीवाने मिल कर सनम की, परमात्मा की बात करते हैं तो वह तो तीर्थ बन जाता है। यहां एक दीवाना-इस दुनिया के लोगों की दृष्टि में हास्यास्पद माना गया मनुष्य-महातीर्थ रचता है।
अष्टावक्र जो कहते हैं उसे ओशो महागीता कहते हैं। ओशो ने उन्मनी अवस्था में, दीवानगी में, सदियों पहले दो दीवानों के संवाद द्वारा जो तीर्थ रचा गया था, उस में फिर प्राण-प्रतिष्ठा कर दी है। आधुनिक अष्टावक्र ने यहां एक अनूठा महातीर्थ रचा है।
हरीन्द्र दवे प्रधान संपादक जन्मभूमि-प्रवासी बंबई
जन्मभूमि-प्रवासी के मुख्य संपादक श्री हरीन्द्र दवे भारतीय साहित्य के सुविख्यात सर्जक हैं, जिन्हें 1978 में राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत किया गया—गुजराती साहित्य को इनके अनूठे योगदान के लिए। 1982 में इन्हें रणजीतराम गोल्ड मेडल तथा इनकी रचना 'कृष्ण अने मानव संबंधों के लिए 1982-83 का श्री अरविंदो मेडल प्राप्त हुआ। 1981 में ब्रिटिश सरकार ने अध्ययन-भ्रमण के लिए तथा 1984 में उत्तरी अमेरिका की साहित्य अकादमी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भाषण-भ्रमण के लिए इन्हें आमंत्रित किया। अमेरिका के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालयों में इनके भाषण हए। 1987-1988 में भारत के प्रधानमंत्री की मास्को, तुर्की, सीरिया, पश्चिमी जर्मनी तथा संयुक्त राष्ट्र की विशेष यात्राओं में प्रतिनिधिमंडल के साथ इन्हें आमंत्रित किया गया।
और सर्वाधिक उल्लेखनीय है कि जन्मभूमि प्रवासी में श्री हरीन्द्र दवे के साप्ताहिक धर्मलेखों में ओशो का जीवन-दर्शन निरंतर झलकता है।