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सूत्रम्
३१॥
| इटोना चोतरा समान व्रतोने आपवां तेना उपर महेल समान आचारने समजाववो. तेमा रहेलो मुमुच बघां शास्वरुष रत्नोने प्राप्त आचा०करे छे अने मोक्षनुं सुख मेळवे छे.
हवे सूत्र अनुगममा अस्खलितादि गुण लक्षणवाल सूत्र उच्चारतुं तेनुं लक्षण आ छे, अप्पगंथ महत्थं बत्तीसा दोस विरहियं जं च । लक्खण जुत्तं सुत्तं अढहिय गुणेहिं उववेयं ॥१॥ थोडा बोलमां महान अर्थने अने वत्रीश दोष रहित लक्षणयुक्त आठ गुणे करीने युक्त बोलचु. ते आ प्रमाणे छे. 'सुयं मे आउसं तेणं भगवया एव मक्खाय-इहमेगेसि णो सण्णा भवई' (सू०१)। | सूत्रना गुणो बताच्या पछी पहेलु मूत्र उपर बताव्यु छ ' सुर्यमे' इत्यादि आ सूत्रनी संहितादि क्रमवडे व्याख्या करे छे. तेमा (१) संहिता ते आखू शुद्ध सूत्र उच्चार जोइए ते बतायु. हवे (२) पदच्छेद करे छे. श्रुतं, मया, आयुष्मन् ! तेन भगवता, एवं आख्यातम् , इह. एकेषां, नोसंज्ञा, भवति, आमा छेक्टर्नु पद क्रियापद छे. बाकीनां नाम, सर्वनाम, विशेषण, विगेरे छे. पदच्छेद मूत्र अनुगम कथा पछी हवे सूबना पदार्थ कहे छे. एटले मूळ ग्रंधकर्ता भगवान मुधर्मस्वामी पोताना मुख्य शिष्य जंबूखामीने आ प्रमाणे कहे छे. में भगवान महावीर पासे आ प्रमाणे सांभळयु छे ( तेम कहेवाथी ग्रंथकारे पोतानी बुद्धिवढे कद्देवानो निषेध को छे. पण सर्वज्ञ महावीरे जे कामु ते पोते कहे छे.)
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