Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 169
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१७५॥ www.kobatirth.org अथवा औदकिभावना उदयवी नरकादि चार गतिमां जीव भमे छे ते जाणवुं उपर कहेला वधा आवर्तयां फक्त भाव आवर्तथी प्रयोजन छे. बीजाथी नथी, हवे ए शब्दादि गुणो संसारना आवर्तयां कारणभूत छे, अने वनस्पतिथी कारण मुख्यपणे बनेला छे, ते केम ? कोइ अमुक नियत दिशाना भागमां वर्ते छे के बधी दिशामां वर्ते छे ? ते कहे छे. उड्ढे अहं तिरियं पाईणं पासमाणे रुवाई पासति, सुणमाणे सदाई सुणेति उडूढं अहं पाईणं मुच्चमाणे रूवेसु मुच्छति सदेसु आवि (सू. ४१) harrat दिशाने अंगीकार फरवाथी उंची दिशामा रहेला रूप गुणो ने महेलोना मधाळामां तथा हवेलीओ (सारी जोड़ने ) उंचे (दरेक जन जुए छे; तथा पहाडना शिखरे घडेलो अथवा महेल उपर चडेलो नाचे रहेलां रूपो (वस्तुओ) जुए छे, अहीं अधः शब्दथी नीचेनी दिशा जाणवी अने घरनी भींतो वगेरेमा रहेलां रूपो तिर्यक् शब्दथी चार दिशा तथा चार खुणा लेवां ते आम|माणे पूर्व विगेरे दिशामा देखातो चक्षुना ज्ञानमा परिणत थइने चक्षुमां आवीने रहेलां पोते देखे छे; (प्रथम आंखमां प्रतिबिंब पडे, त्यार पछी वस्तुनो निश्रय धाय के) तथा उपर कहेली दिशाभोमा सांभळतो सांभळे छे, अर्थात् कान दइने लक्ष्य आपे तोज बरोवर संभळाइने समजाय छे; अहीं उपलब्धिथी ज्ञान मात्र लीधुं. पण सांभळवाथीन के देखवाथीज संसार भ्रमण नथी, पण कदाचित् रुप विगेरेमां मूर्छा करे तो एने कर्म बंध छे. एवं बतावे छे, उ (उंची) विगेरे दिशाओमां रूप देखी रागना परिणाम करे, तथा ते प्रमाणे शब्दोमा तथा गंध रस स्पर्शमां रागना परिणाम करे तो तेने बंध थाय छे, सूत्रमां फरी उर्ध्व लेवानुं ए कारण छे For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१७५॥

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