Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सूत्रम् १२१६॥ बिना क्रिया नकामी छे, जेम देखना छतां पांगळो भागमा वळी मुभो, अने दोडवा छता अधिळो बळी मुभो, तेथी जेन मत पपाणे आचानयो जो एक चीजा साथे अपेक्षा न राखे, तो ते मिथ्यात्वरूपे रही सम्यकभावने अनुभवता नथी, पण परस्पर अपेक्षा राखी ए॥२१६॥ कठा क्येला परस्पर अर्थ बताचाथीः सम्यकपणे ( साचा) थाय छे, तेथी कबुं छे, के दुनियामा जेटला सत्य अभिप्रायो . ते नय छे. पण ते नयो भीजानी अपेक्षा न राखे, तो शत्रुरुप थइ मिथ्यात्वपणे छे पण एक वीजानो संबंधी रही एकत्र थाय तो ते सम्यक्त्व थाय. ते प्रमाणे अहिं ज्ञान चरण बन्ने मळीने मोक्ष प्राप्तिमां समर्थ थे. पण एकलुं ज्ञान के एकल चरण नहि, आ जिने चरनो निर्दोष पक्ष वताव्यो, हवे बन्नेनुं प्रधानपणुं वतावचा कहे छे. बधा नयोच घणा पकारनुं वक्तव्य सांभळीने बंधा नयोनु विशुद्ध जे तत्व तेने समजीने ते प्रमाणे आदरीने चरणगुणमा स्थित साधु होय, एटले चरण अने गुण ए बेउमा जे रहेलो ते चरण गुण स्थित छे. अहिं गुणथी ज्ञान लेचु, कारण के आत्मा गुणी छे तेनो गुण ज्ञान छे, ते बन्नेनो कोइ पण वखत वियोग यतो नथी, तेथी ते सहभाविक गुण छे. आ प्रमाणे घणा प्रकारे नय मार्गर्नु स्वरूप समजीने संक्षेपथी ज्ञान चारित्रमान रहे, आ विद्वानोनो निश्चय छे, पण एकला चारित्रथीन ज्ञान विना इच्छित माप्ति न थाय. आगळ अंधर्नु द्रष्टात आप्यु हे, ते प्रमाणे ज्ञान मात्रयीज क्रिया विना इच्छित प्राप्ति न थाय तथा पंगुर्नु द्रष्टांत आपेलं छे, ते आरीते, कोइ नगरमा आंधळो तथा पांगळो बन्ने रहेता हता, ते नगर चळवा लाम्युं त्यारे बधा लोको भागी गया, पण आंधळो तथा पांगळो रही गया, एक देखे के, चीजो दोडे छे, पण ज्यां सुधी बन्ने न मळ्या, त्यां सुधी दुःखी थया, पण ज्यारे बन्ने मळ्या. त्यारे बन्नेनो छुटको थयो, जेवी रीते अंध, SINESS For Private and Personal use only

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