Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 211
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२१७॥ www.kobatirth.org पंगु, भेगा थया, तेवी रीते ज्ञान चरण बन्नेने प्रधान मानी ज्ञान भणी क्रिया करे से मोक्ष प्राप्त करे छे आ प्रमाणे आचारांगनुं संदोहभूत पहेलु अध्ययन छ जीवनिकायनुस्वरूप तथा तेना रक्षणनो उपाय बताबनार छे, जे प्रथम मध्य अने अंतम दयाना एक वा एकांत fra करनार छे, भने जे मुमुक्षु शिष्ये मूत्रथी तथा अर्थथी भण्णुं तथा श्रद्धा अने संवेगवडे यथायोग्य आत्म स्वरूपे कर्यु, तेथी महाव्रत आरोपण ते उपस्थापना' ( वडी दिक्षा ) ने योग्य जाणी निशीथ विगेरे सूत्रोमा बनावेला क्रमोवढे सचित्त पृथिवीना मध्यमां आचायें गमन विगेरे करवावडे परीक्षा करी शिष्यने श्रद्धावाळो जाणीने बडीदीक्षा आपवी तेनी विधि कहे छे, सारी तिथि, करण, नक्षत्रमुहूर्त तथा द्रव्य क्षेत्र, भाव, सारा देखीने जिनेश्वरनी मूर्तिने प्रवर्धमान स्तुतिओ बडे' नमस्कार करीने जिनेश्वरना पगपां पडीने उभो धयेल आचार्य शिष्य साथै महाव्रत आरोपण संबंधी कायोत्सर्ग करीने एक एक महाव्रतने Restart आरंभी or त्रण वखत पाठ बोले, ज्यां सुधी रात्रिभोजन संपूर्ण विरणत्रतनो पाठ आपे स्वारपछी आ पाठ त्रण बखत उधारो. इच्याई पंच महवयाई राइभोयणवेरमणछट्टाई असहिय याए उपसंपजित्ता णं विहरामि आ पांच महाव्रत छठु रात्रिभोजन विरमण व्रत ते पोताना आत्माना हित माटे प्राप्त करीने विचरुं हुं पछी बांदणां देव डावी थोडं नमीने शिष्य बोले, आज्ञा आपो हुं भुं बोलुं, त्यारे आचार्य कदे, बांदीने धारण कर ( बोल ) तमे मने महात्रत अर्पण कर्या छे, अने हवे तिशिक्षानी इच्छा राखुं छं, त्यारे आचार्य कहे, संसारथी तारो निस्तार थाओ, मोक्ष किनारे पहोंच, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२१७॥

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