Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie
निज्झाइत्ता पडिलेहिता पत्तेयं परि निव्वाणं सब्वेसि पाणाण सव्वेसि भृयाण सव्वेसि जीयाणं सव्वेसिं| आचा० सत्ताणं अस्सायं अपरिनिव्वाणं महभयं दुक्ख तिबेमि, तसंति पाणा पदिसो दिसासु य (सू. ५०) || सूत्रम् ॥१९३॥ ___आ प्रमाणे गोपाळ खीथी आरंभीने प्रसिद्ध ययेलं प्रसकाय बरावर चितवीने कहुं छ. ( कत्वा प्रत्ययथी उत्तर क्रिया बधी ||
ई ॥१९३॥ " "जगोपर योनवी) पहेलां वरावर निश्चय कराय हे अने त्यारपठी तेना प्रत्ये उपेक्षा लक्ष्य भाग के. एम बतावे छे. 'पडिलेद्द त'I
सि प्रत्युपेक्ष्य पटले बराबर सारी रीते जोइ [ विचारी ] ने शु जोर्बु ते बताचे छे. एकमेक त्रसकीय प्रत्येक पोतपाताना सुख भोग-H वनारां सर्वे पाणीभी के बीजानुं सुख बीजो भोगवतो नथी आ सर्वे माणो भोनो धर्म छे एम बतावे छे चे व्रण चार इन्द्रियवाळां | बघा पाणी ओ तथा बधा प्रत्येक साधारण सूक्ष्मवादर पर्याप्त अपर्याप्त तरुभो जे सर्व भूतो छ तथा गर्भव्युत्कातिक समूर्छनन औषपातिक पंचेन्द्रिय जीवो तथा पृथिवी आदि एकेन्द्रिय सर्व सत्यो विगैरे एकबीजाना दुःख एकबीजां भोगवी शकता नथी, पण पोताना दुःखो पोतेज भोग के अहिं माथ विगेरे शब्दोनो खरीरीते भेद नथी पण नीचेना न्याय वचनना व्यवहारथी भेद छे. कड्यु के के प्राणा द्वित्रि चतुः प्रोक्ताः भृतास्तु तरवः स्मृताः । जीवाः पंचेन्द्रियाः प्रोक्ताः शेषाः सत्वा उदीरिताः ।।
___इंद्रिय, ऋण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, जीवो पाण कहेबाय छे. तरु वृक्षो विगेरे भूत पंचेन्द्रिय जीवो कहे वाय, अने वाकीना सतत्व कहेवाय ॥१॥ अथवा शब्द व्युत्पत्चिद्वार समभिरुढनय मनबढे भेद जोबो से आ पमाणे छे..
हमेशा माण धारण करवाी (माणो) माणीभो छ, प्रणे काळमा रहेला होवाथी भूत छेत्रणे काळमा जीववाथी जीव भने ।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214