Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 202
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२०८॥ www.kobatirth.org * 7:111111 बारामा गएनन हार प विगेरेनी अपेक्षा क्याथी होय ? अने जे बहारना जीवोने जाणे ते यथायोग्य अध्यात्मने जाणे छे; कारण के ते बाह्य अने अध्याम एक बोजानी साये अव्यभिचारवाळां छे; ( एटले समान छे ) परना आत्माना ज्ञानथी हवे शृं करखुं, ते बतावे छे; आ प्रमाणे कला लक्षणवाळी तुलाए तो तुं जेम तारा आत्माने सर्वथा सुखना अभिलाषीपणाथी रक्षे छे तेम बोजाने पण तुं बचाव, जेम पारकाने तेमज आत्माने ए ये तुलोमां समान तोळीने पर अने पोतानुं सुख दुःख तेनो अनुभव जो, अने ते प्रमाणे कर (आबुं गुरु कहे छे) aण कंटण व पाए विद्धस्स वेयणहस्स । जह होइ अनिव्वाणी सव्वत्थ जिऐसु तं जाण ॥१॥ बळी लाकडाथी अथवा कांटाथी पगमां लागतां जेवी रीते तने वेदना थाय छे. तेवी रीते तुं बीजा जीवोमां पण जाण, तथा मरीश एटलं सांभळतां तने जे दुःख थाय छे ते प्रमाणे ते अनुमानवडे, बीजाने दुःख थाय छे ते जाणवु शक्य छे, अने पारकानुं रक्षण कर ते पण शक्य छे, तेथी जेम तुलाए तोळवानुं बतान्युं, ते प्रमाणे स्व अने पर समजनारा माणसो स्थावर जंगम जंतुना समूहना रक्षण माटे पवर्ते हे, केवीरीते वर्ते छे. ते बताये छे, इह संतिगया दविया णावकखंति जीविडं (सू० ५७ ) आ दयाना एक रसाळा जीनवचनमां, शान्ति ( उपशम ) ते प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा, आस्तिकयने चतावनार लक्ष For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥२०८॥

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