Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा० सूत्रम ॥२०७॥ ॥२०७॥ SA- 14 ल चाळो गयो त्यारे राजाए समय आवे तेने खरी बात कही, अने क्षमा मागी, ॥ १४ ॥ दन्यातंकने देखनारो पोताना आत्याने हम्मेशा धर्मधोफ्ना शिष्पनी माफक अहित आरंभथी पोते दूर रहे छे. ॥ १५ ॥ तेम भाव आतंकने देखनारो नरक, तिर्यच मनुष्य अने देवताना भवमा व्हालानो वियोग विगेरे, तथा मनुष्य विगेरेने, शरीर | अने मनना आतंक (दुःखो )ना भयथी, दरीने वायुने दुःख देवाना समारंभां न भवते, पण आ वायूने दुःखन कारण छे. तथा ते अहित छे, एम समजीने तजे छ, तेथी जे विमळ विवेकभावथी आतंकदर्शी होय छे ते वायुना समारंभनी जुगुप्सामा समर्थ छे; हित, अहित, माप्ति, परिहार, एटले हित थाय, अहित दूर थाय, एवा अनुष्ठाननी प्रवृत्तिमा पोते समर्थ छे, तेनाथी बीजो एवाज पुरुषनी माफक एटले जे कोइ आतंकने जाणे, ते वायुनो असंभ त्यागे छः वायुकाय समारंभनी निवृत्तिमां कारण बतावे छे, आरमाने आगळ करीने जे वते ते अध्यात्म छे, अने ते मुख दुःख विगेरे छे. ते अध्यात्मने जे जाणे एटले तेनुं स्वरूप समजे, ते बहारनां पाणीगण जे वायुकाय, बिगेरे छ; वेने जाणे छेजेम मारो आत्मा सुख्नो अभिलाषी थइ, दुःखथी खेद पामे छे. तेम बायु विगेरेने पण छे, बळी मने पावेलु अति कटुक अशातावेदनीना फर्मना उदयथी, अशुभ फळ एटले दुःख आवेलुं छे ते पोताने अनुभव सिद्ध छे, तथा पोताना अत्मामां शातावेदनी, कर्मना उदपथी शुभ फळरुप सुख आवेलुं ते मुख, दुःख बन्नेने जे जाणे, तेज खरेखरो अध्यात्मने जाणे छे, प प्रमाणे जे अध्यात्म वेदी छे, ते पाताना आत्माथी बहार रहेला वायुकायादि माणीHI गणने, जढी जदी प्रकाग्ना उपक्रमशी जन्पन्न थयेला पोताथी भने पारकाथी अने मनमा थनारां मुख दाखोने जाणे छे, पटले For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214