Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 193
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasagersuri Gyanmandie आचा सुत्रम छटो उदेशो को हवे सातमो आरंभे छे तेनो छहानी साये आवीरीते संबंध के नवा धर्म पामनारने दाखथी श्रद्धा रहे छ । तथा वायुन अल्पपरिभोगपणु के पाटे उत्तमे आवेला वायुन थोई जे कंइ कडेवान के, ते सरुष निरुपणकरणाने या परेशानो 81 उपक्रम करे के तेथी भाषा संबंधी आवेला आ उद्देशानो उपक्रम विगेरे चार अनुयोग द्वारा कहेवा; ज्यांसुधरी नामनिष्पना निक्षेपामा वायुउद्देशक ए ममाणे तेमां वायुनु स्वरूप निरुपण करवाने माटे केटलांक द्वारना अतिदेश जेमा रहेल छे एवी गाथार्नु । नियुक्तिकार कथन करे छे. वायुस्सऽवि दाराई, ताई हवंति पुढवीए; । नाणत्ती उ विहाणे, परिमाणुव भोग सस्थेय ॥ १६ ॥ जे वाय ते वायु सेना के द्वारा पृथिवीकायना उद्देशामा प्रतिपादन कर्या छे. तेज द्वार भहीं छे, पण विधान परिमाण उपभोग, शस्त्र अने च शब्दथी लक्षणमा जुदापणुं जाणवू तेमां विधान प्रतिपादन करवा कहे तो. दुविहा उ वाउजीवा सुहमा तह बायरा उ लोगंमि । सुहमा य सव्वलोए पंचेव य बायरविहाणा ॥१६५॥ ___वायु एज जे जीव, ते वायु जीव छे, ए चे प्रकारे छे, सूक्ष्म अने बादर, तेबां नामकर्मना उदपथी सूक्ष्म, अने वादर एम कहेवाय छे तेमां मूक्ष्म सर्व लोकमां पापीने रहे छे. अने व्याप्तिवडे ते एक घर जेनां पारणां जाळीश्रो विगेरेने बासी दइए कीए; छतां धुमाढो अंदर रहे छे तेवी रीते रहे थे पादरभेद पांच प्रकारे छे, ते भेद प्रतिपादन करवाने माटे गाया कहे . . । उक्कलिया मंडलिया गुंजा घणवाय सुद्धवाया य । बायरवाउविहाणा पंचविहा वणिया एए ॥ १६६ ॥ For Private and Personal use only

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