Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 209
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आचा सुत्रम ॥२१५॥ १२१५॥ भगवाने कहेलु, ते ९ कहुँ छु. अहीं भगवान एटले हानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय, ए चार कर्म आत्माना गुणनो पात करनार होबाथी, पनघाती कर्म कहेबाय के दूर करवायी संपूर्ण पदार्थ नुं दिव्यान जेणे प्राप्त कर्य छ, तथा जेने रचा इन्द्रो नमे छे, तथा चोत्रीश अतिशयथी युक्त छे; एवा श्री वर्धमानस्वामी पासेथी उपदेश सांभळी में आ बधु कयुं छे. आममाणे टीकाकार कहे छे के,सूत्रनो अनुगम, निक्षेप अने सूत्रने स्पर्श करनारी नियुक्ति ए बधुं को, इवे नैगम विगेरे नयो कहे छे. ते बीजे स्थळे विस्ताथी कला छे,अहि तो संक्षेपथी ये मकारना छे.ते का छे, माननय, अने चरणनय,तेमां बाननयवाला मोक्षना साधनमा ज्ञानने प्रधान माने छे, कारण के हित अहितनी प्राप्ति तथा त्याग तेना बडे , अने ज्ञानना भापारयोज वर्धा दुःख क्षय थाय के, पण ते भी शान माफक क्रिया प्रधान मानता नथी आ ज्ञाननयवाद थयो, हवे चरणनय कहे छे; तेओ चरणने मधान माने छे. सकल पदार्थमा भन्वय व्यतिरेकना समधिगम्यपणाथी ने प्रधान छ, जेमके ज्ञान होय तो पण सकल वस्तुने भाणा छतां चारित्र विना भावमा धारण करेलां कर्मोनो उच्छेद न थाय, अने तेनावीना मोक्षतो लाभ न थाय, तेथी ज्ञान प्रधान नथी, पण चरण प्राप्त था सर्व मूळ अने उत्तर गुणवाळ चारित्र होवाथी, ते पात तां पातीकर्मनों उच्छेद थाय छे. अने तेथी केवळज्ञान गाय, अने तेथीन यथाख्यात चारित्र प्राप्त यता अनि ज्वाळाना समृध्थी जेम काट बळी जाय, तेय ते चारित्रधी सकल कर्म समूह नास थाय छे, अने तेथील अन्यायाध मुखबाळु मोक्ष थाय, तेथी चारित्र तेज प्रधान हे. आ बन्नेन आचार्य समाधान करे . एकएकने प्रधान मानवाथी अने बीजाने उडाववाथी बन्ने मिध्यादर्शनीय ( भूलेला). कारण के क्रिया विना ज्ञान नका, छे, अने शान For Private and Personal use only

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