Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 13 स्थान रजधी व्याप्त छे, अथवा जे वनस्पति भेदातां पृथिवी सरखा भेदवडे केदारना उपर सूकी तरीनी माफक पुटभेदे भेदाय छे. द्र आचा० तेने अनंतकाय जाणो; हवे बीना लक्षणो कहे छे. सूत्रम गूढसिरागं पत्तं सच्छीरं जं च होइ निच्छोरं । ज पुण पणदृसंधिय अणंतजीवं वियाणाहि ॥ १४ ॥ ॥१६५॥ ॥१६५॥ जेने गूढ सीरवाळां तथा खोरवाळा पादडा होय अने खीर न पण होय, त्या जेना सांधा न देखावा होय ते अनंतकाप जाणवा, ए प्रमाणे साधारण जीवोने लक्षणथी बताती हवे अनतकाय वनस्पतिनां नामो बतावे छे. सेवालकत्थभाणियअवए पणए य किंनए य हढे। एए अणंतजीवा भणिया अण्णे अणेगविहा ।१४१। सेवाल, कस्य माणिक अबक, पन्नक, विण्व हठ, विगेरे अनंत जो अनेक प्रकारमा कहेला . एम बीना पण जाणवा, हवे प्रत्येक शरीस्वाळानां एक विगेरे जोवनुं ग्रहण करेलु शरीर बतावदा कहे छे. H एगस्स दुण्ह तिण्ह व संखिजाण व तहा असंखाणं पत्तेयसरीराणं, दीसंति सरीरसंघाया ॥ १४ ॥ एक जीवे ग्रहण करेलु, शरीरताड, सरल, नाहीयेर विगेरेना स्कंध के तथा ते चवथी ग्रहण कराय छे तथा रिस (तन्तु): मृणाल, फर्णिका, कुणक, कटाहनुं एक जीवनुं ग्रहणपणुं छे, अने ते चक्षुथी देखाप छे. अने घे त्रण, सरूपेय, असंख्येय, जीवोनुं ग्रहण करेल पण (शरीर) चश्चयी देखातं जाणव. भवन-यारे अनन्तकायनं ते प्रमाण ले के केम? उत्तर तेम नथी ते बतावे छे, II e - For Private and Personal Use Only

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