Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie सूत्रम ॥२०१॥ है केवळ स्पर्शवानन छे, तेम अमे नी पानता, प्रयोगनो अर्थ गाथावडे बतायो छे. प्रयोग आ प्रमाणे छे"गाय अने अश्च विगेरेनी । आचा० माफक वायु बीजाए प्रेरेलो बांकी भने अनियमित गतिवाळो होबाथी, चेतनावान छे."तिर्यक् एज गमनना नियमना अभावथी भने । अनियमित एवं विशेषण आपवाथी, परमाणु साथे व्यभिचार यवानो संभव नथी, कारण के ते नियमित गतिवाळो हे जीव अने पुद्गलनी ४ ॥२०१॥ 'अनुश्रेणीगतिः (तत्वा० अ०२०२७)ए वचनथी जाणQ. तथा आ वायु घन, शुद्ध वातादि भेदोवानो, अने शखथी न इणायो | होय, त्यां सुधी चेतनावाळो छे; एम समजबुं हवे परिमाणद्वार कहे छे. जे वायरपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ता ते। सेसा तिन्निवि रासी वीसं लोगा असंखिज्जा॥१६८॥ दारं जे बाँदर पर्याप्त वायुओ छे; ते संवर्तितलक मतरना असंख्येय भागमा रहेनारा प्रदेशराशि परिमाणवाला छे, अने बाकीनी त्रणे राशीओ चारे तरफ जुदी जुदी असंख्येय लोकाकाश प्रदेश परिमाण थाय छ, अहिं आटलं विशेष जाणवू के 'बादरअपकाय है पर्याप्ताथी, बादर वायुकाय पर्याप्ता, असंख्येय गुणा छ, बादर अप्काय अपर्याप्तायी, यादर वायु काय अपर्याप्ता, असंख्येय गुणा छे. सूक्ष्म अप्काय अपर्याप्ताथी, सूक्ष्म वायु काया अपर्याप्ता, कंइक वधारे थे, मूक्ष्म अप्काय, पर्याप्ताधी मूक्ष्मवायुकाय पर्याप्ता ४ कइक बधारे छे. हवे उपभोग द्वार कहे छे वियणधमणाभिधारण उस्सिचणफुसणआणुपाणू अ । वायरवाउकाए उव भोगगुणा मणुस्साणं ॥ १६९ ॥ मनुष्योने पंखाथी पवन नांखयो, धमणधी फुकवू, वायु धारण करीने शरीरमा प्राण अपानरुपे राखवो, विगैरे बादर वायु-। For Private and Personal Use Only

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