Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 192
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आघा० ॥१९८॥ www.kobatirth.org विगेरे, एवरी घणा लोको पोताना प्रयोजन माटे हणे छे अने केटलाक तो कांइपण प्रयोजन शिवाय काचंडा, परोळी मारे छे. अने बीजा केटलाक विचारे छे के आ सिंहे, सापे, तथा शत्रु मारा सगाने मार्यो छे, एम धारीने तेनुं वेर लेवा माटे तेने मारे छे. अथवा मने दुःख आप्युं, एम धारीने पण मारे छे, अथवा हालमां आ सिंह विगेरे बीजाओने तथा आपणने दुःख दे छे. माटे एने मारो जोइए, एम धारीने मारे छे. अथवा कोइ बखत आ अमोने अथवा बीजाने मारशे, एम धारी सर्पादिने मारे छे, एवा घणा प्रकारे विषय हिंसा बतावीने उद्देशाना अर्थने पूरी करना कहे छे. एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिणाया भवन्ति तं परिण्णाय मेहाची णेत्र सयं तसकायसत्थं समारभेजा, क्षेत्रऽपणे हिं तसकाय सत्थं समारंभावेजा, णेवऽण्णे तसकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा, जस्सेते तसकायसमारंभा परिणाया भवन्ति सेहु मुणी परिएणायकम्मे (सू. ५४ ) त्तिबेमि ॥ इति षष्ठ उद्देशकः ॥ काना समारंभी विरत थयेलो होवाथी तेज मुनि अने पापकर्मनुं प्रत्याख्यान करेलुं होवाथी तेज परिज्ञातकर्मा कदेवो, एम सघ ज्यां सुधी आबात आवे, त्यां सुधी वधुं पुर्वनी पेठे कहे. श्रीसुधर्मास्वामी कहे छे के आ बधुं हुं भगवान त्रिलोकना बन्धु परम केवलज्ञानथी बघा भुवनना प्रपंचनो साक्षात्कार करनार वीर भगवानना उपदेशश्री कहूं छुए प्रमाणे छट्टो उदेशी समाप्त भयो, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १९८ ॥

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