Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९९०॥ www.kobatirth.org मांसने माटे हरण, सूअर, आदि मराय छे; चामडी माटे चित्र आदि मराय छे; बाळ माटे जंदर आदि हणाय छे; पीछा माटे मोर, गीध, कपिंचुक, अंदर विगेरे हाय छे. पुंच्छने माटे चमरी, गायो विगेरे, दांतने माटे हाथी, सूअर विगेरे हणाय छे ए प्रमाणे सर्व जगोपर संबंध ठेवो. अहि केटलाको पूर्व कहेला प्रयोजनने उद्देशीने हणे छे, केटलांको प्रयोजन विना पण रमत Tuania मारे छे अने केलांको प्रसंग दोपथी मृगने ताकीने मारेलां वाणनी वचमां आवी गयेलां अनेक कपोत, कपिंजल, पोपट, कोयल, मेना, विगेरे हणे छे तथा कर्म ते खेती विगेरे अनेक प्रकारनां छे ते करवामां मेरायला घणा सकायोने हणे छे, दोरडी विगेरेथी मारे छे चाबुक तथा लकडी विगेरेथी ताडन करे छे, अने हणे छे, तेनो जीवथी त्रियोग करावे छे; आ प्रकारे द्वार समूह कड़ीने हवे वधी नियुक्तिना अर्थना उपसंहार माटे कहे छे. सेसाई दाराई ताई जाई हवंति पुढवीए। एवं तस कार्यमी निज्जुती कित्तिया एसा ॥ १६३ ॥ जे द्वारो कयां ते शिवायना जेटलां द्वारो छे ते वधां पृथिवीकायनां जेवांज समजवां, अने पृथिवीकायनुं स्वरूप निर्माण करती वखते जे गाथाओं कही छे, ते वधी नियुक्तिओ सकायना उद्देशामां पण कही छे, एम जाणनुं, हवे मृत्रानुगममां अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र बोलं, ते आ प्रमाणे. सेबेमि तिमे तसा पाणा तंजहा- अंडयापोयया जराउआ रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भियया उववाइया, एस संसारोति पश्चई (सू. ४८ ) For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥ १९० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214