Book Title: Acharanga Stram Part 01
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsuri Gyarmandie आचा DI सूत्रम् ॥१९६॥ से सयमेव तसकायसस्थं समारभति अण्णेहिं था तसकायसत्थं समारंभावेइ अण्णे वा तसकाय. सत्थं समारभमाणे समणुजाणइ, तं से अहि आए तं से अबोहोए से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुहाग्य सोच्चा भगवओ अणगारागं अंतिए इह मेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे एस खलु मोहे एस खल्लु मारे एस खलु णरए, इच्चरथं गड्ढिए लोए जमिणं विरूवरूवेहिं सत्धेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसरथं समारंभमाणे अण्णे अण्णेगरूवे पाणे विहिंसंति (सू. ५२) व्याख्यान पहेला पेठे जाणवू एट ले अन्य लोको अनेकरुपे हालता चालता पाणी श्रोनो वध करे छे, इत्यादि पूना जेझुंज व्याख्यान कर, कोइपण गमे ते कारण लइने त्रसकायगो वध करे छे, ते वतत्रयाने माटे कहे हे. से बेमि अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, ऐवं हिययाए पित्ताए, वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए पहारुणीए अट्ठीए अहिमिजाए अट्ठाए अणट्ठाए, अप्पेगे हिसिसु मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिसिस्संति मेत्ति वा वहति (स. ५३) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214