Book Title: Tandul Vaicharik Prakirnakam
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ ८ ] तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णकम् एए तु अहोरत्ता नियमा जीवस्स गन्भवासंमि । होणाहिया उ इत्तो उवघायवसेण जायंति ॥५॥ अह सहस्सा तिनि उ सा मुहुत्ताण पन्नवीसा य । गन्भगओ वसह जीओ नियमा होणाहिया इत्ती॥६॥ तिन्नेव य कोडीओ चउदस य हवंति सयसहस्साई। दस चेव सहस्साइं दुन्नि सया पण्णवीसा य ॥ ७ ॥ उस्सासा निस्सासा इत्तियमित्ता हवंति संकलिया। जीवस्स गम्भवासे नियमा होणाहिया इत्तो ॥८॥ ___ "दुन्नि" द्वे अहोरात्रशते (२००) सम्पूर्ण सप्तसप्तत्यधिके (७७) अन्यदर्धमहोरात्रं च जीवो गर्भ वसति-तिष्ठति, एतावता नव मासान् सार्धसप्तदिनांश्च जीवो गर्भे तिष्ठतीत्यर्थः ॥४॥ “एए तु" एते-उक्तरूपा अहोरात्रा निश्चयेन जीवस्य गर्भवासे भवन्ति इत्तो'त्ति अस्मादुक्तादहोरात्रप्रमाणात् उपघातवशेन-वातपित्तादिदोषेण हीनाधिका अपि 'जायंति'त्ति धातूनामनेकार्थत्वात् भवन्तीत्यर्थः, तु शब्दोऽप्यर्थः स च योजित इति ॥ ५ ॥ अथ गर्भ मुहूर्तानां प्रमाणमाह-"अट्ट सहस्सा" अष्टौ सहस्राणि त्रीणि शतानि पञ्चविंशत्यधिकानि मुहूर्तानि (८३२५) निश्चयेन जीवो गर्भ वसति, तानि च कथं भवन्ति ?, उक्तलक्षणाः सप्तसप्तत्यधिकद्विशताहोरात्राः (२७७) त्रिंशता गुणिताः (८३१०) एतावन्तो भवन्ति,

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