Book Title: Tandul Vaicharik Prakirnakam
Author(s): Vijayjinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 12
________________ तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णकम् [ नामेति ॥ १ ॥ ' मङ्गलाचरणमभिधेयं च प्रतिपाद्यात्र द्वार गाथाद्वयमाह सुणह गणिए दह दसा वाससयाउस्स जह विभज्जति । संकलिए वोगसिए जं चाउं सेसयं होइ ॥ २॥ जत्तिय मित्ते दिवसे जन्तियराईमुहुत्तमुस्सा से | गर्भमि वसह जीवो आहारविहिं च वुच्छामि ॥ ३ ॥ 'सुणह० जत्तिय०' अत्र पदानां सम्बन्धोऽयं -वर्ष - शतायुषो जन्तोर्यथा दश दशा - दशावस्थाः 'विभज्जन्ती' ति पृथग्भवन्ति तथा यूयं शृणुत, क सति ? - गणिते - एकद्वयादीति क्रियमाणे सति, तथा दशदशा सङ्कलिते - एकत्र मीलिते तथा व्युत्कर्षिते - निष्कासिते सति 'वाससयं परमाउं इत्तो पन्नासं हरइ निद्दाए' इत्यादिना यच्चायुःशेषकं भवति तदपि यूयं शृणुत ।। २ ।। यावन्मात्रान् दिवसान् यावद्रात्रीयवन्मुहूर्त्तान् यावदुच्छ्वासान् जीवो गर्भे वसति तान् वक्ष्ये, गर्भादिके आहारविधिं चशब्दाच्छरीररोमादिस्वरूपं च वक्ष्ये - भणिष्यामीति ॥ ३ ॥ तत्र गर्भे अहोरात्राणां प्रमाणमाह - दुन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरिं चेव । गर्भमि वसइ जीवो अद्धमहोरत्तमण्णं च ॥ ४ ॥ १. सामान्येन मङ्गलमभिधेयं चाभिघाय विशेषतोऽभिधेयप्रतिपानायेत्यपि ।

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