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भरहेसर-बाहुबली सज्झाय
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'श्री अभयकुमार जैसी बुद्धि हो' इस माँग से वर्ष का शुभारंभ करते हैं। श्री अभयकुमार वीरप्रभु के परमभक्त, महाराज श्रेणिक तथा सुनंदा के अत्यंत तेजस्वी, विनयी, सौजन्यशील, प्रजावत्सल और निर्मल सम्यग्दर्शन के धारक ज्येष्ठ पुत्र थे।।
व्यवहार कुशलता, पंडिताई, राजकाज की सूझ, साधना मार्ग को प्रकाशित करनेवाली निर्मलबुद्धि तथा वचनानुसारितारूप सरलता से उनकी पारिणामिकी बुद्धि को चार-चाँद लग जाते थे। किन्तु संसार के रागी व्यापारी केवल उनकी कुशल बुद्धि की प्रार्थना करते हैं, उनकी सरल, मार्गानुसारी बुद्धि उन्हें इष्ट नहीं है।
अप्रतिम बुद्धि से ही उन्होंने बाल्यावस्था में गहरे खाली कुएँ में उतरे बिना उसमें से अँगूठी बाहर निकालकर, श्रेणिक महाराजा के महामंत्रीपद को प्राप्त किया था। इस मेधावी मंत्री और विनयी पितृभक्त ने मगधराज्य को भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि से सुविकसित किया था। अनन्य धर्मभावना और शासन भक्त होने के कारण उनके राज्य में जैनशासन की रक्षा-प्रभावना नित्य होती थी। राजगृही में जब अज्ञानी लोग सर्वविरतिधर साधुओं की निंदा करने लगे, तब उन्होंने कुशलतापूर्वक साधु की निंदा बंद करवाकर साधु के प्रति भक्ति जगाकर उन लोगों को वंदन-पूजन करनेवाले उपासक बना दिए थे। भौतिक सुख के लिए मित्रता करनेवाले एक अनार्य देश के राजकुंवर आर्द्रकुमार को जिनप्रतिमा की भेंट भेजकर अभयकुमार ने उनको सम्यग्दर्शन का स्वामी बना दिया था।
वीरप्रभु की देशना सुनकर अत्यंत विरक्त अभयकुमारजी को मोहवश पिता से संयम ग्रहण करने की अनुज्ञा नहीं मिल रही थी। लेकिन पिता ने यह भी कहा था कि जिस दिन मैं कहूँ, “तुम यहाँ से चले जाओ' तब