________________
१९५
भरहेसर-बाहुबली सज्झाय चौदह पूर्व के अंतिम ज्ञाता श्री भद्रबाहुस्वामीजी ने आवश्यक आदि दस सूत्रों के ऊपर नियुक्ति की रचना करके अनन्य श्रुतभक्ति की थी। जब ५००-५०० साधुगण वाचना लेने आए, तब वे रोज की सात वाचना देते थे और बाकी का समय ध्यान करते थे । जब उनको महाप्राण ध्यान सिद्ध हो गया तब उन्होंने साधुओं को उनकी इच्छा के अनुसार वाचना देनी शुरू कर दी। इस ध्यान द्वारा उन्होंने मात्र ४८ मिनिट में चौदह पूर्व का शुरू से अंत तक और अंत से शुरू तक स्वाध्याय करने की क्षमता प्राप्त की थी।
वराहमिहिर ने अपने अधूरे ज्योतिषज्ञान से राजपुत्र को उसकी उम्र १०० वर्ष बताकर बधाई दी । परन्तु वीर प्रभु के सातवीं पाट को दीपायमान करनेवाले श्री भद्रबाहुजी ने उसका प्रतिकार किया और राजपुत्र सिर्फ सात दिन का महेमान है और उसकी मौत बिल्ली से होगी इत्यादि सचोट भविष्यवाणी कर जैनशासन की महान प्रभावना की थी। उन्होंने व्यंतर बने हुए वराहमिहिर के उपसर्ग को शांत करने के लिए उवसग्गहरं स्तोत्र की रचना की। महामंगलकारी श्री कल्पसूत्र के रचयिता भी वही हैं। उस काल के महान शास्त्रकार होने के साथ-साथ वे महान अध्यापक भी थे। श्री स्थूलभद्रजी को उन्होंने ही मूल से १४ पूर्व का और अर्थ से १० पूर्वं का ज्ञान प्रदान किया था।
"हे महर्षि ! प्रभुवचन से प्रज्वलित परंपरा हम तक पहुँचाने में आप एक महत्त्व की कड़ी बने रहे। हमें भी आप जैसी श्रुतोपासना करने का सामर्थ्य दें, ऐसी प्रार्थना है।"
1. दशवैकालिक, २. उत्तराध्ययन, ३. दशाश्रुतस्कन्ध, ४. कल्पसूत्र, ५. व्यवहारसूत्र, ६. आवश्यक
सूत्र, ७. सूर्यप्रज्ञप्ति, ८. सूयगडांग, ९. आचारांग, १०. ऋषिभाषितः इन दस सूत्रों पर श्री भद्रबाहुस्वामी ने नियुक्ति की रचना की है ।